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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015
- इस प्रकार सर्वत्र न्याय शास्त्र का स्वरूप स्पष्ट किया है। तत्त्वज्ञान के साधन स्वरूप स्मृतिग्रन्थों में, प्रायः मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति और विष्णु स्मृति में इस विद्या का वर्णन प्राप्त होता है।
__ वात्स्यायन ने न्याय भाष्य की भूमिका में स्पष्ट कहा है कि प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्याय:१४ अर्थात् सभी प्रमाणों से अर्थ की परीक्षा करना न्याय है। न्याय उस वाक्य समूह को भी कहा जाता है जो अन्य व्यक्ति को अनुमान द्वारा किसी विषय का बोध कराने के लिए प्रयुक्त होता है। वात्स्यायन ने उसे परम न्याय कहा है और उसे वाद, जल्प, वितण्डा रूप विचारों का मूल तथा तत्त्वनिर्णय का आधार बताया है।15 न्यायशास्त्र के भेद : ___ भारतीय वाङ्मय में न्याय के दो भेद माने गये हैं वैदिक और अवैदिक। जिस न्याय में वेद का प्रामाण्य स्वीकृत किया गया है वह वैदिक है और जिसमें वेद का प्रामाण्य स्वीकृत नहीं किया गया है वह अवैदिक। अवैदिक न्याय में चार्वाक्, जैन और बौद्ध दर्शन के सौत्रन्तिक, वैभाषिक, योगाचार, माधयमिक सम्प्रदाय तथा अन्य अपने देश के अर्वाचीन चिन्तकों द्वारा उद्भावित समग्र न्याय का समावेश है। वैदिक न्याय में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा तथा उत्तरमीमांसा आदि वेदान्त के न्यायों का समावेश है। उक्त सभी न्याय शास्त्रों मे गौतमीय न्याय शास्त्र को सर्वमूर्धन्य स्थान प्राप्त है, क्योंकि न्याय का विवेचन तथा न्याय की प्रणाली एवं वस्तु तत्व का विचार करने में जैसी सावधानी और सतर्कता गौतमीय न्याय में अपनायी गयी है वैसी अन्य कहीं नहीं अपनाई गयी है।
गौतमीय वैदिक न्याय-शास्त्र के समग्र वाङ्गमय को दो धाराओं में विभाजित किया जाता है- प्रमेय प्रधान और प्रमाण प्रधान। गौतम से गंगेश के पूर्व तर्क के न्यायविद् विद्वानों की कृतियाँ प्रमेय प्रधान है और गंगेश की तत्त्वचिन्तामणि तथा उस पर आधारित परवर्ती विद्वानों की समग्र कृतियाँ प्रमाण प्रधान हैं। प्रमेय प्रधान ग्रन्थराशि को प्राचीन न्याय तथा प्रमाण प्रध न ग्रन्थराशि को नव्य न्याय कहा जाता है। प्राचीन न्याय तथा नव्यन्याय में जो भेद है वह मुख्यतया उनकी भाषा और शैली पर आधारित है। प्राचीन न्याय के ग्रन्थों में जहां प्रकारता, विशेष्यता, संसर्गता, प्रतियोगिता, अनुयोगिता, अबच्छेदकता, अबच्छेद्यता, निरूपकता, निरूप्यता आदि शब्द कठिनाई से प्राप्त होते हैं, वहीं नव्यन्याय के ग्रन्थों में इनकी भरमार रहती है। नव्य न्याय