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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 को अनात्मा से पृथक् करना दार्शनिकों का प्रधान कार्य रहा है। इसीलिए 'आत्मानविद्वि' आत्मा को जानो, यह भारतीय दर्शनों का मूलमंत्र है। यही कारण है कि प्रायः समस्त भारतीय दर्शन आत्मा की सत्ता पर प्रतिष्ठित हैं। धर्म तथा दर्शन में प्रारम्भ से ही घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है और दर्शन शास्त्र के सुविचारित आध्यात्मिक तथ्यों के ऊपर ही भारतीय धर्म दर्शन दृढ़ प्रतिष्ठित है। तार्किक विचार पद्धति, तत्त्वज्ञान, विचार प्रयोजक ज्ञान अथवा परीक्षाविधि का नाम दर्शन है। दर्शन का मूल उद्गम कोई एक वस्तु या सिद्धान्त होता है। जिस वस्तु या सिद्धान्त को लेकर यौक्तिक विचार किया जाए उसी का वह दर्शन बन जाता है। 'दर्शन' शब्द का प्रयोग सबसे पहले आत्मा से सम्बन्धित विचार के अर्थ में हुआ। दर्शन यानी वह तत्त्वज्ञान जो आत्मा, कर्म, धर्म, स्वर्ग, नरकादि का विचार करे। दर्शन अर्थात् विश्व की मीमांसा, अस्तित्त्व या नास्तित्त्व विचार अथवा सत्त्व शोधका साधन।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्राचीन ऋषि महर्षियों तथा दार्शनिकों ने अपनी तात्त्विक दृष्टि से जिन-जिन तथ्यों का साक्षात्कार किया उन तथ्यों को 'दर्शन' शब्द द्वारा अभिधीत किया गया तथा जो कछ श्रद्धा के द्वारा स्वीकार किया गया था उसकी वास्तविकता को तर्क द्वारा सिद्ध करने के प्रबल प्रयास किये गये। यह तरीका बुद्धि संगत नहीं है ऐसी बात नहीं क्योंकि दर्शन उस प्रयास का ही दूसरा नाम है जो मानव समाज के बढ़ते हुए अनुभव की व्याख्या के लिए किया जाता है।
____ भारतीय दार्शनिक चिन्तन परम्परा में विविध दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ। जिनमें आस्तिक दर्शनों के रूप में छः दर्शन अधिक प्रसिद्ध हुए-महर्षि गौतम का 'न्यायदर्शन', कणाद का 'वैशेषिकदर्शन, कपिल का 'सांख्यदर्शन', पतंजलि का 'योगदर्शन' जैमिनि का 'पूर्व मीमांसा' और बादरायण का 'उत्तर मीमांसा' अथवा वेदान्त'। ये सभी वैदिक दर्शन के नाम से जाने जाते हैं क्योंकि ये वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं। भारतीय दर्शन परम्परा के अनुसार जो दर्शन वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं वे आस्तिक कहलाते हैं और जो वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते उन्हें नास्तिक की संज्ञा दी गई है। किसी भी दर्शन का नास्तिक या आस्तिक होना परमात्मा के अस्तित्त्व को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने पर निर्भर न होकर वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार