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अनेकान्त 68/3, जुलाई-सितम्बर, 2015 पंचमओ जुझंते, छठो पुण तत्थियं भणइ॥ एक्कं ता हरह धणं, बीयं मारेह मा कणह एयं। केवल हरह घणंती, उवसंहारो इमो तेसिं॥ सव्वे मारेह त्ती, वट्टइ सो किण्हलेसपरिणामो। एवं कमेण सेसा, जा चरमो सुक्कलेसाए।
छः डाक किसी ग्राम को लूटने के लिये जा रहे थे। छहों के मन में लेश्याजनित अपने-अपने परिणामों के अनुसार भिन्न-भिन्न विचार जागृत हुए। उन्होंने ग्राम को लूटने के लिए अलग-अलग विचार रखे- उनसे उनके लेश्या परिणामों का अनुमान किया जा सकता है।
प्रथम डाकू का प्रस्ताव रहा कि जो कोई मनुष्य या पशु अपने सामने आवे- उन सबको मार देना चाहिए।
द्वितीय डाकू ने कहा- पशुओं को मारने से क्या लाभ? मनुष्यों को मारना चाहिए जो अपना विरोध कर सकते हैं।
तृतीय डाकू ने सुझाया- स्त्रियों का हनन मत करो, दुष्ट पुरुषों का ही हनन करना चाहिए।
चतुर्थ डाकू का प्रस्ताव था कि प्रत्येक पुरुष का हनन नहीं करना चाहिए? जो पुरुष शस्त्र सज्जित हों उन्हीं को मारना चाहिए।
पंचम डाकू बोला- शस्त्र सहित पुरुष जो सामना करे उनको ही
मारो।
छठे डाकू ने समझाया कि अपना मतलब धन लूटने से है तो धन लूटें, मारें क्यों? दूसरे का धन छीनना तथा किसी को जान से मारना-दोनों महादोष हैं। अतः उन्हें लूट लें लेकिन मारें किसी को नहीं।
उपरोक्त दोनों दृष्टांत लेश्या परिणामों को समझने के लिये स्थूल दृष्टान्त है। ये दोनों दृष्टान्त दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रचलित हैं। अतः प्रतीत होता है कि ये दृष्टान्त परम्परा से प्रचलित हैं। . आगमों में लेश्या पर विवेचन विभिन्न अपेक्षाओं से किया गया हैं भगवई और पण्णावणासुत्त में एक समान गाथा है
“परिणाम-वन्न-रस-गन्ध-सुद्ध-अपसत्थ-संक्लिट्-हुण्डा
गइ-परिणाम-पएसो-गाह-वग्गणा-ट्ठाणमप्पबहु।'29 आगमों के परिणाम-वर्ण-रस-गन्ध-शुद्ध-अप्रशस्त-संक्लिष्ट-उष्ण-गति - संक्रमण- प्रदेश-अवगाहन-वर्गणा-स्थान-अल्पबहुल्व- इन 15 प्रकार से