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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 __यदि अनेकान्तवाद का सहयोग लिया जाय, इसके महत्व को समझा जाय, उसकी उपयोगिता समझी जाय और इसके माध्यम से चिंतन किया जाय तो निम्न लक्षण फलित होने की प्रबल संभावना है।'
1. मानवीय एकता का विकास 2. सहअस्तित्व की भावना का विकास 3. व्यवहार में प्रामाणिकता और 4. आम निरीक्षण की प्रवृत्ति का विकास। ___ अनेकान्त चिंतन से प्राप्त लक्ष्य को व्यवहार में लाने से जीवन, आचरण के बदलाव संभव है। मनुष्य का अहं विरोध, घृणा, असहिष्णुता आदि दुर्गणों को विकसित करता है, जबकि अनेकान्त समन्वय का, विरोध परिहार का मार्ग प्रशस्त करता है। अनेकान्त का मार्ग मानव की ज्ञान, दर्शन एवं आचरण में समन्वय स्थापित कर दु:ख मुक्ति की ओर ले जाता है। ___ वर्तमान में राजनैतिक जीवन में वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय अत्यन्त उपादेय है। विरोधी पक्ष द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना आज के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणाओं में भी सत्यता हो सकती है और सबल विरोधी दल की उपस्थिति से हमें अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है इस विचार दृष्टि और सहिष्णु भावना में ही प्रजातन्त्र का भविष्य उज्जवल रह सकता है।
राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र वस्तुतः राजनैतिक स्याद्वाद है। आज स्याद्वाद सिद्धान्त का व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनितिज्ञों पर है। राजव्यवस्था का मूल लक्ष्य जनकल्याण को दृष्टि में रखते हुए विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के मध्य एक सांग संतुलन स्थापित करना है। आश्यकता सैद्धांतिक विवादों की नहीं अपितु जनहित में संरक्षण एवं मानव की पाशविक वृत्तियों के नियंत्रण की है।
आज विश्व की ऐसी चिन्तनशैली की आवश्यकता है, जिससे एकता, समरसता, सहिष्णुता, समता, शांति तथा सामंजस्य एवं समन्वय रह सके। ___भारत की पहल पर 1947 के आरम्भ में नई दिल्ली में "एशियाई" सम्बन्ध सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें अनेक राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। 18 अप्रैल 1985 के वाण्डंग सम्मेलन (इण्डोनेशिया) में