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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 तीर्थकर शांतिनाथ की मूर्ति स्थापित है। मंदिर संख्या तीन में श्री चरण जी एवं तीर्थकर की बैठी प्रतिमा है। मंदिर संख्या चार बडे बाबा का मंदिर कहलाता है। इस मंदिर में सम्वत् 1001 की निर्मित विशालकाय प्रतिमा भगवान शांतिनाथ की है। जिसकी ऊँचाई 18 फुट है। क्षेत्र के पूर्वी भाग में स्थापत्य कला का प्रतीक अद्भुत रमणीक सहस्रकूट चैत्यालय स्थापित है। यह 10वीं शती ई0 का चैत्यालय स्थापत्य कला में बेजोड़ है। चैत्यालय के सम्बन्ध में अहारजी स्थित शिलालेख में विस्तार से वर्णन है जो भगवान शांतिनाथ के पादमूल में स्थित है। इससे यह प्रमाण मिलता है कि सूर्य के सदृश्य यहां भी सम्पन्न देवपाल हुए जिनके द्वारा वानपुर में सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण करवाया गया। शिलालेख सं. 1237 का है। यह चैत्यालय वास्तुकला विशेषज्ञ ‘पापट' द्वारा निर्मित है।'' शिखर पर मध्य से ऊपर उत्तर की ओर एक चौबीसी का भी अंकन है। इसी समूह में वीणा वादिनी सरस्वती अम्बिका, जिसकी गोद में शिशु प्रियंकर और नीचे खड़े खिलौना लिए बालक शुभंकर का अंकन है। चक्रेश्वरी अप्सरा दर्पण लिए इसी मंदिर में शोभायमान है। पुरातत्ववेत्ताओं की दृष्टि में यहां की सरस्वती प्रतिमा को अद्भुत कहा है। यहीं से ही एक शिलाखण्ड जो 4x5फुट 6इंच
का है भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया गया है। इस शिलाखण्ड में कुल 70 मूर्तियां उत्कीर्ण है जिनमें 53 तीर्थकरों की एवं शेष शासन देव-देवियों की मूर्तियां अत्यन्त कलात्मक ढंग से शोभायमान है। मध्य में पद्मासन में तीर्थकर की एक बड़ी मूर्ति है। दोनों ओर पार्श्वनाथ की खड़ी मूर्ति बनी है। 'क्षुल्लक चिदानन्द स्मृतिग्रंथ' में श्री नीरज जैन जी ने "वानपुर का चतुरमुख सहस्रकूट जिनालय" नामक लेख में विस्तार से प्रकाश डाला है। श्री नीरज जैन जी के साथ श्रद्धेय पंडित खुशालचंद जी गोरावाला और श्री पन्नालाल जैन भी इस अतिशय क्षेत्र में पधार चुके हैं। वानपुर में ही दो जैन मंदिर हैं जिनमें एक 'नया मंदिर' और दूसरा बड़ा मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में कुछ पुरातत्व महत्व की प्राचीन मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर में प्राचीन भित्तिकला देखते ही बनती
निष्कर्ष रूप में इस क्षेत्र ने भारतीय मूर्ति शिल्प को जो महत्वूपर्ण योगदान दिया। संक्षेप इस प्रकार है:- गुप्तकाल की मूर्तिकला का सुन्दरतम