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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 उत्तराधिकारियों के नाम आये हैं। दोनों अभिलेखों में वर्णित भोजदेव एक ही
है।
__ दूधई-चाँदपुर ललितपुर जिले में आते हैं जो पृथक-पृथक दो स्थान हैं। इनकी संस्कृति कला समान है। इसलिए यहां पर एक साथ ही विवेचन किया गया है। धौर्रा से लगभग 11 कि0मी0 दक्षिण पश्चिम की ओर घने जंगलों में स्थित है। यह ललितपुर से दक्षिण में लगभग 27 कि0मी0 दूर है। प्राचीन काल में यह बड़ा नगर था तथा व्यापारिक मार्ग से जुड़ा था। अल्बरूनी ने भी इसे एक बड़े शहर के रूप में उल्लेख किया है।'' झाँसी से प्राप्त एक अभिलेख में 'दुग्ध कुप्याग्राम' का उल्लेख आया है। यहां पर दो जैन मंदिर स्थित है। चांदपुर 24'30' उत्तरी अक्षांश तथा 78° 18 पूर्वी देशान्तर पर मध्य रेलवे के धौर्रा स्टेशन से लगभग 3 कि0मी0 दूर स्थित है। यह गाँव जंगलों के मध्य स्थित है। रेलवे लाइन के पार जैन मंदिर स्थित है। ये मंदिर पूर्णरूपेण खंडित हो चुके हैं।
झाँसी-मानिकपुर मध्य रेलवे लाइन पर महोबा स्टेशन है। जहाँ से शहर लगभग 5 कि0मी0 पड़ता है। अनुश्रुतियों के अनुसार चंदेलवंश के संस्थापक चन्द्रवर्मा ने 16 वर्ष की आयु में यहीं 'महोत्सव' मनाया था। "महोत्सवनगर" शब्द का परिवर्तित रूप ही महोबा है। महोबा ब्राह्मण, जैन, और बौद्ध तीनों धर्मों की मुख्य नगर के रूप में जाना जाता है। यहां से जैन धर्म की काफी मूर्तियां प्राप्त हुई है। तीर्थंकरों में ऋषभनाथ, पद्मप्रभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की महोबा से प्राप्त प्रतिमाएं राजकीय संग्रहालय झांसी में संग्रहीत हैं। अधिकांश मूर्तियों के पादपीठ पर अभिलेख खुदा है। ऋषभनाथ की मूर्ति पर अंकित अभिलेख में तिथि सं. 1228 तथा मूर्तिकार कैल्हण का नाम दिया गया है। इसी प्रकार पद्मप्रभनाथ की सम्वत् 1219 में बनी प्रतिमा पर मूर्तिकार रामदेव का उल्लेख है। राज्य संग्रहालय लखनऊ में महोबा की कई मूर्तियां प्रदर्शित है यथा- बाहुबली 12वीं शती ई0 सम्वत् 1213 की, सुब्रतनाथ मूर्ति की पलथी, लाँक्षनयुक्त, नमिनाथ की चरण चौकी 12वीं सम्वत् 1324 का हिरण लांक्षनयुक्त शांतिनाथ की मूर्ति की चरण चौकी, ऋषभनाथ 12वीं शती ई0 इसके अतिरिक्त महोबा से ही अम्बिका 12वीं