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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 उदाहरण इसी क्षेत्र के हैं। इसी क्षेत्र में चन्देल कला शैली को जन्म दिया। मूर्तियों के निर्माण में कई तरह का ग्रेनाइट, लाल बलुआ पत्थर भूरा काला, हरा पत्थर, संगमरमर धातु की तरह बजने वाला पत्थर आदि बनावट देखी जा सकती है। इतने अधिक मूर्तिकारों के नाम इसी क्षेत्र से ज्ञात हुए है। यहां जैन और हिन्दूधर्म का अच्छा तालमेल रहा है। एक ही स्थान पर एक समय में दोनों धर्मों का पुष्पित पल्लवित समान रूप से हुआ है। जैन आचार्यों, उपाध्यायों तथा साधु-साध्वियों को इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियाँ इसी क्षेत्र से प्राप्त हुई है। संदर्भ : 1. त्रिवेदी एस0डी0 बुन्देलखण्ड का पुरातत्व पृष्ठ। 2. आ0 स0 रिपो0 भाग 2, पृ. 98 3. दास : ब्रज रत्न, बुन्देलों का इतिहास 4. ए0 एस0 आई0 रिपोर्ट कनिंघम भाग 10 पृ. 107 5. ए0 एस0 आई0 तथैव कनिंघम भाग 10 पृ. 82-89 6. तिवारी मारूति प्रसाद उ0प्र0 (पुरातत्व विशेषांक) वर्ष 9 अंक 12 पृ. 52-54 7. डॉ. त्रिवेदी बुन्देलखण्ड का पुरातत्व पृ. 55 8. ए0 एस0 आई0 रिपोर्ट (कनिंघम) भाग 10, पृ. 103 9. डॉ. त्रिवेदी एस. डी. बुन्देलखण्ड का पुरातत्व पृ. 84 10. जिला गजेटियर झांसी (1965) पृ. 362 11. डॉ. त्रिवेदी बुन्देलखण्ड का पुरातत्व पृ. 86 से साभार 12. जिला गजेटियर झांसी (1965) पृ. 362 13. अल्बरूनीज इंडिया वाल्यूम 1 पृष्ठ 202 14. "दुग्ध कुप्यो हमयांग्राम' अभिलेख की 10वीं पंक्ति इपी इण्डिका भाग 1,
पृ. 214-217 15. जिला गजेटियर झांसी (1965) पृ. 333 16. 'अनेकान्त' पृ. 45 17. अनेकान्त पत्रिका 1963
- संग्रहाध्यक्ष (से.नि.) 64 ए, कृष्णा विहार, दर्पण कालोनी, पो. आर0 के0 पुरी, ग्वालियर-474011 (म0प्र)