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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 (२) व्ययी प्राकृतिक संसाधन- इन्हें गतिक या पुनर्नव्य प्राकृतिक संसाधन भी कहते हैं। इसके अंतर्गत उपयोग योग्य जल, वनस्पतियाँ, जन्तु, मानव जनसंख्या, खनिज पोषक द्रव्य, ऑक्सीजन, कार्बनडायआक्साइड, उर्वर मृदा आदि आते हैं।
(३) संचित प्राकृतिक संसाधन- इन्हें व्ययशील या अपुनर्नव्य संसाधन कहते हैं। इनके अन्तर्गत ठोस मृदा, पर्वत, चट्टान आदि, जीव प्रजातियाँ, प्राकृतिक भूखण्ड, भूगर्भीय जल, कोयला, प्राकृतिक गैसें, पेट्रोलियम पदार्थ, सोना, चाँदी हीरा आदि खनिज आते हैं।
उक्त प्राकृतिक संसाधन मात्र साधन ही नहीं अपितु हमारी समृद्धि के भी प्रतीक हैं; जिनसे हमारा पर्यावरण चेतना प्राप्त करता है।
आज पर्यावरण के लिए परिस्थितिकी को प्रथम स्थान पर रखा जाने लगा है। अंग्रेजी शब्द ECOLOGY का हिन्दी रूपान्तर परिस्थितिकी है। इकालॉजी शब्द ग्रीक मल ओइकास (OIKOS) अर्थात घर एवं लॉजी (LOGY) अर्थात् अध्ययन से बना है। अस्तु इकालॉजी का शाब्दिक अर्थ 'घरों का अध्ययन' अथवा अधिक विस्तृत भाव में निवास स्थान (पर्यावरण)
का अध्ययन करना है। इसे 'पर्यावरण जीवविज्ञान' भी कहा जाता है। इकालॉजी के हिन्दी पर्याय परिस्थितिकी की व्युत्पत्ति संस्कृत के मूल परि उपसर्ग सहित स्था धातु से क्तिन् प्रत्यय लगाकर बने शब्द स्थिति से हुई है, जिसका अर्थ चारों ओर विद्यमान उन दशाओं से है जो प्रभाव डालती है एवं स्वयं भी प्रभावित होती है। किसी 'जीव' की 'परिस्थिति' का अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।"3
पारिस्थितिकी के अन्तर्गत निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुखतः अध्ययन की परिधि में आते हैं
1. पुरा पारिस्थितिकी (Poleo Ecology) 2. जलाशय पारिस्थितिकी (Limnology) 3. सागर चित्रण (Oceanogrophy) 4. तेजोविर पारिस्थितिकी (Radio Ecology) 5. जीव भूगोलविज्ञान (Biogeogrophy)