________________
अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 अन्तर्सम्बन्ध सम्मिलित है।" भारतीय संविधान के ही सेक्शन 48 ए में forals fo- "Protection and improvement of environment and safeguarding of forests and wildlife"अर्थात् पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन तथा वन एवं वन्य पशु का संरक्षण। इस तरह सेक्शन 49ए (जी) #fra fo- "It shall be the duty of every citizen of India to protect and improve the natural environment, including forests, lakes rivers and wildlife and to have compassion for living creatures."
वास्तव में पशु-पक्षी तो अपना काम स्वभावतः करते ही हैं। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसके जिम्मे संरक्षण का कार्य है। वह अपने कर्तव्य से विमुख हो जाये तो घातक भी बन सकता है। विवेक, बुद्धि एवं पुरुषार्थ सम्पन्नता मनुष्य से अपेक्षाओं को बढ़ाती है। मनुष्य के चारों ओर की सृष्टि-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को पर्यावरण के नाम से अभिहित किया जाता है। मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु चाहे वह थल के हों, नभ के हों या जल के हों; सभी का अस्तित्व पर्यावरण के सन्तुलन पर निर्भर करता है। जीव रक्षा के लिए पृथ्वी ठहराने का कार्य करती है, जल जीवन देने का कार्य करता है, अग्नि ऊष्मा प्रदान करती है, आकाश अवकाश (स्थान) देता है और वायु प्राणशक्ति प्रदान करती है। जीव-जगत् को वृक्षों से भोजन का उपहार मिलता है। यदि पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वाय अपने कर्त्तव्य से च्यत हो जायें तो मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं बल्कि सृष्टि का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा। अतः पर्यावरण की रक्षा करना विवेकशील मानव का प्रथम कर्तव्य है।
मानव विवेकशीलता की पहचान उसके सोच एवं कार्य से होती है। सम्पूर्ण प्राणियों और प्रकृति में जिजीविषा और आत्मा को मानने वाला जीव न तो किसी प्राणी को मारेगा, न किसी पेड़ पौधे को नष्ट करेगा। वह तो प्रकृति के साथ-साथ प्राणी मात्र के हितों का संवर्धन करेगा। प्रकृति हमें जीवन देती है। उसका दैहिक शोषण उचित नहीं कहा जा सकता। जबकि यह नीति स्वयं प्रसिद्ध है कि नदियाँ स्वयं अपना जल