________________
25
अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015
महाकवि पुष्पदन्त (महापुराण 2/13) ने प्राकृतिक सरस सौन्दर्य का अत्यन्त निकट से साक्षात्कार किया है। एक उदाहरण देखिए
पडु तडि-वडण पडिय बियडायल, रुज्जिय सीह दाउणो। __णच्चिय मत्त मोर कल-कल-रव, पूरिय सयल काणणो॥ विबुध श्रीधर ने वड्डमाणचरिउ में श्वेतछत्रनगरी के वर्णन में लिखा है जहि जल-खाइयहि तरंग-पंति। सोहदपवणाहय गयणपंति। णव-णलिणि समुब्भव-पत्तणील। णं जंगम-महिहर माल लील॥
अर्थात श्वेतछत्र नगरी की जल-परिखाओं में पवनाहत होकर तरंग-पंक्ति ऐसी शोभित होती थीं, मानों गगन-पंक्ति ही हो। नवनलिनी अपने पत्तों सहित महीधर के समान शोभित होती थी।
एक ओर यह स्थिति थी दूसरी ओर यह है कि नदियों तक में भी तरंगें नहीं है। नदियों को इस कदर प्रदूषित किया गया है कि उनके पानी से सड़ांध आ रही है। जीव-जन्तु मर रहे हैं। नदियों के प्रदूषित पानी को पीकर अनेक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। जिस गंगा नदी को पापहारिणी, पतितहारिणी, पतितपावनी माना जाता था वह इस तरह दूषित हो गयी है कि भारत सरकार को उसकी स्वच्छता के लिए अलग मंत्रालय बनाना पड़ा है।
मुनि कनकाअर (मुनि कनकामर) ने करकंडुचरिउ में गंगा का जीवन्त वर्णन करते हुए लिखा था किगंगापएसु संपत्तएण गंगाणइ दिट्ठी जंतएण। सा सोहइ सिय-जल कुडिलवंति, णं सेयभुवंगहो महिल जंति। दुराउ वहती अइविहाई, हिमवंत-गिरिंदहो कित्ति णाइँ। विहिं कूलहिं लोयहिं ण्हतएहिं आइच्चहो जलु परिदितिएहिं। दब्भंकियउडहिं करयलेहिं णइ भणइ णाइँ एयहिं छलेहि। हउँ सुद्धिय णियमग्गेण जामि मा रूसहि अम्महो उवरि सामि॥१०
__ अर्थात् शुभ्र जलयुक्त, कुटिलप्रवाह वाली गंगा ऐसी शोभित हो रही थी मानो शेषनाग की स्त्री जा रही हो। दूर से बहती हुई गंगा ऐसी दिखलाई पड़ती है जैसे वह हिमवंत गिरीन्द्र की कीर्ति हो। दोनों कूलों पर नहाते हुए और आदित्य को जल चढ़ाते हुए, दर्भ से युक्त ऊँचे उठाये हुए