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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015 का हनन तो करती ही है, परन्तु वह अन्य भी बहुत से क्लेशों की खानि है। वह कुटुम्ब का भी अनर्थ करती है और कुल के यश एवं धन की भी हानि करती है।
अचौर्याणुव्रत के अतिचार (दोष) :
तत्त्वार्थसूत्रकार आचार्य उमास्वामी ने यद्यपि जो अतिचार गिनाये हैं, वे व्रत के हैं तथापि अचौर्य व्रत के प्रसंग में परिमाणित पांचों अतिचारों का सीधा सम्बन्ध अचौर्याणुव्रत से ही है। अतः उनका उल्लेख अचौर्याणुव्रत के अतिचार के रूप में किया जा रहा है- 'स्तेनप्रयोग-तदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान-प्रतिरूपकव्यवहाराः। 30
जैनाचारविषयक सभी ग्रन्थों में क्वचित् शब्दान्तर के साथ इन्हीं पांच अतिचारों का विवेचन हुआ है। यथा -
१. स्तेनप्रयोग- चोरी की प्रेरणा करना, कराना या अनुमोदना करना अथवा चोरी करने का उपाय सुझाना स्तेन प्रयोग नामक अतिचार (दोष) है।
२. तदाहृतादान- चोर के द्वारा चुराई गई वस्तु का ग्रहण करना या चोरी का माल खरीदना तदाहृतादान नामक अतिचार है।
३. विरुद्धराज्यातिक्रम- राज्य नियमों के विरुद्ध आचारण करना, आय होने पर भी निर्धारित आयकर न देना, व्यापार में हुए लेन-देन को छुपाना, ताकि व्यापार कर बचाया जा सके, टोल टैक्स या चुंगी आदि नियमानुसार न देना, वस्तुओं का इसलिए निर्धारित सीमा से अधिक संग्रह करना ताकि मंहगे दामों में बेची जा सके, राज्य द्वारा प्रतिषिद्ध वस्तुओं को छिपाकर बेचना, कालाबाजारी करना आदि विरुद्धराज्यातिक्रम नामक अतिचार के अन्तर्गत आते हैं। कर (टैक्स) की चोरी होने से इसे अचौर्याणुव्रत के अतिचार में रखा गया है।
४. हीनाधिकमानोन्मान- माप एवं तौल के निर्धारित प्रमाणों- मीटर, लीटर, किलोग्राम आदि को लेने-देने के इरादे से कम-ज्यादा प्रमाण वाले रखना हीनाधिकमानोन्मान नामक अतिचार है। द्रोण, प्रस्थ आदि वस्तु मापने के साधन मान तथा बॉट आदि वस्तु को तौलने के साधन उन्मान कहलाते