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अनेकान्त 68/2, अप्रैल-जून, 2015
जिनवाणी स्तुति
(१) सांची तो गंगा यह वीतराग वाणी
सांची तो गंगा यह वीतराग वाणी। अविच्छिन्न धारा निज धर्म की कहानी।।
सांची तो गंगा यह वीतरागवाणी जामें अति ही विमल अगाध ज्ञान पानी। जहां नहीं, शंकाादि पंक की निशानी।। सांची तो..
सप्तभंग, जल तरंग, उछलत सुखदानी। सन्तचित मरालवृन्द रमै नित्य ज्ञानी।।
सांची तो गंगा यह वीतरागवाणी
जाके अवगाहन तैं शुद्ध होय प्रानी। 'भागचन्द' निहचै घट माहिं या प्रमानी।। सांची..
- कविवर भागचन्द