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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015
पाठकों के पत्र.....
→ “अनेकान्त" के अप्रैल-जून 2014 अंक के लिए बधाई। नया स्वरूप, भी भव्य है। सामग्री महत्त्वपूर्ण है। प्रयत्न करें कि 100 प्रतिशत शुद्ध छपे। आ. निहालचन्द जी- आप वीर सेवा मंदिर में आ गये यह संस्था तथा आप, दोनों के लिए उपयोगी है। अकादमिक गतिविधियों को बढ़ाइये।
- डॉ० गोकुलचंद जैन
(वरिष्ठ साहित्यकार), इन्दौर (म0प्र0 > इधर कुछ वर्षों से, “अनेकान्त" का नियमित और समय से प्रकाशन देखकर, वीर सेवा मंदिर की गतिविधियों पर हर्षित हूँ। अनेकान्त त्रैमासिकी की, शोधात्मक-छवि रही है, जिसका पालन निष्ठापूर्वक हो रहा है। श्रद्धेय पं0 जुगलकिशोर 'मुख्तार' जी का यह शोध संस्थान उनकी कर्मभूमि रही है और उन्होंने 'अनेकान्त' के माध्यम से जैनसमाज में ज्ञान चेतना को वृद्धिगंत किया। उनकी भावना, साकार बनी रहे, वीर सेवा मंदिर को हमारी शुभकामनायें।
प्राचार्य (पं.) नरेन्द्रप्रकाश जैन, फिरोजाबाद (उ0प्र0) > कई दशकों से अनेकान्त प्रकाशित हो रहा है। मुख्तार सा. ने जो स्वप्न देखा, वह मूर्त हुआ और गौरव की बात यह है कि उसकी निरंतरता आज भी उसी रूप में बनी हुई है। इसमें प्रकाशित शोधालेखों का स्तर नवीन अनुसन्धान करने वालों को अपनी और स्वतः ही आकर्षित करता है। सामाजिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक आदि विविध विषयों पर मनीषियों के पठनीय शोध पत्र, इसे सर्वांगीण करते हैं। कुछ विशेषांक भी पुस्तकालयों में खोज कर पढ़े, जैन विचारधारा को अन्य दर्शनों के साथ प्रस्तुत करने का सर्वधर्म पर आधारित विशेषांक एक अच्छा प्रयास था। इस शोध पत्रिका के आधार स्तंभों को हार्दिक धन्यवाद।
-डॉ. आनन्द कुमार जैन, जैनदर्शन विभाग,
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जयपुर