________________
अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015
अहिंसा सम्बन्धी व्यावहारिक समस्याएँ, समाधान तथा उपलब्धियाँ (जैनदर्शन के परिप्रेख्य में)
- डॉ. वंदना मेहता
'अहिसाम जैसे अनेक शब्द प्रवृत्ति दिखलायी माविश्वास, दि
'अहिंसा' निषेधात्मक शब्द है। जैनधर्म में इसके समान समता, सर्वभूतदया, संयम जैसे अनेक शब्द अहिंसक आचरण के लिए प्रयुक्त हैं। वास्तव में जहाँ भी राग-द्वेषमयी प्रवृत्ति दिखलायी पड़ेगी, वहीं हिंसा किसी न किसी रूप में उपस्थित हो जायेगी। सन्देह, अविश्वास, विरोध, क्रूरता और घृणा का परिहार प्रेम, उदारता, और सहानुभूति के बिना संभव नहीं है। प्रकृति और मानव दोनों की क्रूरताओं का निराकरण संयम द्वारा ही संभव है। इसी कारण, जैनाचार्यों ने तीर्थ का विवेचन करते हुए कषायरहित निर्मल संयम की प्रवृत्ति को ही धर्म कहा है। यह संयम रूप अहिंसा धर्म वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में समता और शान्ति स्थापित कर सकता है। इस धर्म का आचरण करने पर स्वार्थ, विद्वेष, सन्देह और अविश्वास को कहीं भी स्थान नहीं है। व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों का परिष्कार भी संयम या अहिंसक प्रवृत्तियों द्वारा सम्भव है। अहिंसा सम्बन्धी समस्याएँ और समाधान :
___ अहिंसा के विषय में जिज्ञासुओं की ओर से जहाँ अनेक व्यर्थ के प्रश्न उठाये गये वहाँ एक आवश्यक और जीवन्त प्रश्न यह भी है कि जैनधर्म के अनुसार यह संसार अनेक छोटे-छोटे जीव-जंतुओं से पूरा भरा हुआ है। दैनिक जीवन से सम्बन्धित कोई भी ऐसी क्रिया नहीं है जिसमें हिंसा न होती हो।' चलने-फिरने, खाने-पीने एवं बोलने आदि साधारण क्रियाओं में भी जीवों का घात होता है। इस स्थिति में अहिंसा की साधना कैसे पूरी होगी? क्या हम निष्क्रिय होकर बैठ जाए? गृहस्थ जीवन अनेक परिग्रहों से युक्त है, जिसमें बहुत से आरम्भ करने पड़ते हैं। अतः अहिंसा की रक्षा वहाँ कैसे सम्भव है? ।
जैनाचार्य संसार से विरत अवश्य थे, किन्तु उन्होंने सामान्य जीवन