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अनेकान्त 68/1, जनवरी-मार्च, 2015 2. पं. टोडरमलजी ने अपनी भाषा वचनिका नामक टीका में भी लिखा है कि 'जो भगवान नेमिचन्द्र नामा सैद्धान्तदेव चारि अनुयोगरूपी चारि समुद्रनिका पारगामी सो चामुण्डराय के संबोधन का मिसकरि समस्त शिष्य जननि के संबोधन के अर्थि त्रिलोकसार नामा ग्रंथ को रचतासंता.
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3. इसी प्रकार गोम्मटसार कर्मकाण्ड में रूपक के रूप में लिखा है कि- 'सिद्धांतरूपी उदयाचल के तट पर उदित निर्मल नेमिचन्द्र की किरण से युक्त गुणरत्नभूषण अर्थात् चामुण्डराय रूपी समुद्र की यति रूपी बेला भुवनतल को पूरित करे।' यहाँ गुणरत्नभूषण' पद चामुण्डराय की उपाधि है।
4. गोम्मटसार के मंगलाचरण में भी "गुणरयणभूसुणुदयं जीवस्स तु परूवणं वोच्छं" कहकर प्रकारान्तर से चामुण्डराय का निर्देशन किया
है।20
5. गोम्मटसार कर्मकाण्ड की गाथा 358 तथा 451 में भी चामुण्डराय का उल्लेख प्राप्त होता है।
नमिऊण णेमिचंदं असहायपरमक्कम महावीरं। णमिऊण वड्डमाणं कणयणिहं देवरायपरिपुज्ज॥३५८॥ असहाय जिणवरिदे असहाय परक्कम्मे महावीरे।। णमिऊण णेमिणाहे सज्जगुहिद्विणमंसियंधिजुंग॥४५१॥
6. गोम्मटसार की जीवकाण्ड की मन्दप्रबोधिनी टीका की उत्थानिका में स्वयं अभयचन्द्र सूरि ने लिखा है कि- गंगवंश के ललामभूत श्रीमद्राचमल्लदेव के महामात्य पद पर विराजमान और रणांगमल्ल, असहाय-पराक्रम, गुणरत्नभूषण, सम्यक्त्वरत्ननिलय आदि विविध सार्थक नामधारी श्री चामुण्डराय के प्रश्न के अनुरूप जीवस्थान नामक प्रथम खण्ड के अर्थसंग्रह करने के लिए गोम्मटसार नाम वाले पञ्चसंग्रह शास्त्र का प्रारंभ करते हुए मैं नेमिचन्द्र मंगलपूर्वक गाथासूत्र कहता
हूँ।
उपर्युक्त तथ्यों का गहराई से अन्वेषण करने पर जस्टिस मांगीलाल जैन के पक्ष में इतना तो स्वीकार किया जा सकता है कि नेमिचन्द्राचार्य