________________ 288 24: 266 273 275 277 281 Y YO छठा प्राचारस्थान : रात्रिभोजन-विरमणव्रत सातते से बारहवं तक प्राचारस्थान : पड़जीव-निकाय-संयम तरहवां प्राचारस्थान : प्रथम उत्तरगण प्रकल्प्य-वणन चौदहवां ग्राचारस्थान : गृहस्थ के भाजन में परिभाननिषेध पन्द्रहवां ग्राचारस्थान : पर्यंक ग्रादि पर सोने-बैठने का निषेध सोलहवां प्राचारस्थान : गृहनिपद्या-वर्जन सत्तरहवा ग्राचारस्थान : स्नान-वजन अठारहवां प्राचारस्थान : विभूपात्याग प्राचारनिष्ठा निर्मलता एवं निर्मोहना आदि का सुफल सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि प्राथमिक चार प्रकार की भापायें और वक्तव्य-प्रवक्तव्य-निर्देश कालादिविषयक निश्चयकारी भापा-निषेध सत्य किन्तु पीडाकारी कठोर भाषा का निषेध भाषा संबन्धी अन्य विधि-निषेध पंचेन्द्रिय प्राणियों के विषय में बोलने का निषेध-विधान वृक्षों एवं वनस्पतियों के विषय में अवाच्य एवं वाच्य का निर्देश संखडि नदी के विषय में निषिद्ध तथा विहित वचन परकृत मावद्ध व्यापार के सम्बन्ध में सावधवचन निषेध असाधु और साधु कहने का निषेध जय-पराजय प्रकृतिप्रकोपादि व मिथ्यावाद के प्ररूपण का निषेध भाषाशुद्धि का अभ्यास अनिवार्य भापाशुद्धि की फलश्रुति अष्टम अध्ययन : आचार-प्रणिधि प्राथमिक प्राचार-प्रणिधि की प्राप्ति के पश्चात वर्तव्य-निर्देश की प्रतिज्ञा अष्टविध सूक्ष्म जीवों की यतना का निर्देश प्रतिलेखन परिष्ठापन एवं सबंक्रियाओं में यतना का निर्देश दष्ट, श्रत और अनुभूत के कथन में विवेक-निर्देश रसनेन्द्रिय और कर्णन्द्रिय के विषयों में समत्वमाधना का निर्देश क्षधा, तृषा प्रादि परीषहा को मम भाव से सहने का उपदेश रात्रिभोजन का सर्वथा निषेध / कोध-लोभ-मान-मद-माया-प्रमादादि का निषेध वीर्याचार की आगधना के विविध पहल कषाय से हानि और इनके त्याग की प्रेरणा रत्नाधिकों के प्रति विनय और नप-सयम में पराक्रम की प्रेरणा प्रमादरहित होकर ज्ञानाचार में संबग्न रहने की प्रेरणा गुरु की पयूपासना करने की विधि स्व-पर-अहितकर भाषा-निषेध ब्रह्मचर्य गुप्ति के विविध अंगों के पालन का निर्देश प्रव्रज्याकालिक श्रद्धा अन्त तक सुरक्षित रखे प्राचारप्रणिधि का फल नवम अध्ययन : विनयसमाधि प्राथमिक "DRr mm in marar mmm m mr m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org