________________ पंचम अध्ययन : पिण्डषणा] [205 मुहालद्ध-जो यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र-औषधि आदि के द्वारा उपकार–सम्पादन किये बिना प्राप्त हो। मुधादायी प्रौर मुधाजीवी को दुर्लभता और दोनों की सुगति 213. दुल्लहा उ मुहावाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा / मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छंति सोग्गइं // 131 // -त्ति बेमि // // पिडेसणाए पढमो उद्देसओ समत्तो॥ [213] मुधादायी दुर्लभ हैं और मुधाजीवी भी दुर्लभ हैं / मुधादायी और मुधाजीवी, दोनों सुगति को प्राप्त होते हैं / / 131 / / -ऐसा मैं कहता हूँ // विवेचन---मुधादायी : व्याख्या-प्रत्युपकार या प्रतिफल की आकांक्षा रखे बिना निःस्पृह एवं नि:स्वार्थ भाव से दान देने वाला मधादायी है। मुधादायी निष्काम वृत्ति का दाता होता है / जो निष्काम वृत्ति से ही दानादि कार्य करता है और यह सोचता है कि मैं किसी पर उपकार नहीं करता, आदाता (लेने वाले) ने मुझ पर उपकार अनुग्रह करके ही मुझ से लिया है और मुझे अनायास ही यह लाभ दिया है। साधु-साध्वियों को दान देने के लिए शास्त्र में भत्त-पाणं पडिलामेमाणे-(भक्तपान (देने) का लाभ लेते हए कहा है। जहाँ दाता में दान देने का अहं ग्रा गया, प्रा साध्वी) से प्रतिफल की कामना आ गई या अन्य सांसारिका फलाकांक्षा आ गई, वहाँ निष्कामनिःस्वार्थ वृत्ति समाप्त हो जाती है / मुधाजीवी की व्याख्या पहले की जा चुकी है / ये दोनों बहुत ही दुर्लभ हैं। दो वि गच्छंति सोग्गइं---इस प्रकार की निष्काम वृत्ति वाले दाता और पादाता आत्मार्थी साधु-साध्वी विरले मिलते हैं। इन दोनों को सुगति प्राप्त होती है। निष्कामवृत्ति के फलस्वरूप वे कर्मबन्धन करने के बजाय कर्मक्षय करते हैं / सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर मोक्ष प्राप्त होता है / इसलिए सुत्ति का अर्थ मोक्षगति या सिद्धिगति है / अथवा कुछ शुभ कर्म शेष रह जाएँ तो देवगति प्राप्त होती है / इस दृष्टि से सुगति का अर्थ-देवगति भी होता है।०३ // पिण्डषणा नामक पंचम अध्ययन का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण / / 101. वेंटलादिउवगारवज्जितेण मुहालद्ध। -अ. च., पृ. 124 102. (क) दशवै. (प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी म.), पृ. 244-245 (ख) दसयालियं (मुनि नथमलजी) पृ. 260 103. (क) दशवं. (आचारमणिमंजूषा) भा. 1, पृ. 497 (ख) दशवै. (संतबालजी) पृ. 60 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org