________________ 276] [दशवकालिकसूत्र (युवावस्था-प्राप्त) है, प्रीणित (तप्त) है, या (यह) महाकाय (प्रौढ शरीर वाला) है, इस प्रकार (भलीभांति विचार कर) बोले / / 23 / / [355] इसी प्रकार प्रज्ञावान् मुनि-'ये गायें दुहने योग्य हैं, तथा ये बछड़े (गोपुत्र) दमन करने (नाथने) योग्य हैं, (भार-) वहन करने योग्य हैं, अथवा रथ (में जोतने)-योग्य हैं; इस प्रकार न बोले / / 24 // [356] प्रयोजनवश बोलना ही पड़े तो (दम्य) बैल को यह युवा बैल है, (दोहनयोग्य) गाय को यह दूध देने वाली है, तथा (लघुवृषभ को) छोटा (बैल), (वृद्ध वृषभ को) बड़ा (बैल) अथवा (रथयोग्य वृषभ को) संवहन (धुरा को वहन करने वाला) है, इस प्रकार (विवेकपूर्वक) बोले !! 25 / / विवेचन--पंचेन्द्रिय जीवों के लिए निषेध्य एवं विधेय वचन---प्रस्तुत पांच सूत्र-गाथाओं (352 से 356 तक) में पंचेन्द्रिय प्राणियों के लिए न बोलने योग्य सावध एवं विवेकपूर्वक बोलने योग्य निरवद्य वचन का निरूपण किया गया है। अनिश्चय दशा में 'जाति' शब्द का प्रयोग-दूरवर्ती मनुष्य या तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय प्राणी के विषय में जब तक सन्देह हो कि यह मादा (स्त्री) है या नर, तब तक साधु-साध्वी को उसके विषय में निश्चयात्मक नहीं कह कर 'यह अमुक जातीय है', ऐसा शब्द प्रयोग करना चाहिए। साधुवर्ग द्वारा प्रयुक्त सावध शब्दों को सुनकर उन प्राणियों को दुःख होता है, तथा सुनने वाले लोग उन्हें दुःख पहुंचा सकते हैं, इसलिए साधु वर्ग को परपीड़ाकारी या हिंसाजनक वचन नहीं बोलना चाहिए।' ___थले' आदि पदों का भावार्थ-थूले-स्थल-मांस की अधिकता के कारण मोटा या तगड़ा / पमेइले-जिसकी मेद (चर्बी) बढ़ी हुई हो। वझे : दो रूप : दो प्रर्थ-(१) वध्य-वध करने योग्य (2) वाह्य-वहन करने योग्य / पाइमे-(१) पाक्य-पकानेयोग्य अथवा काल प्राप्त / (2) पात्य-पातनयोग्य अर्थात्-देवता आदि को बलि देने योग्य / परिवढे : दो रूप दो अर्थ(३) परिवद्ध-अत्यन्त वृद्ध, (2) परिवूढ-समर्थ / संजाए-संजात-युवा हो गया है, यह सुन्दर है। पीणिए-प्रोणित-ग्राहारादि से तृप्त या हृष्टपुष्ट / उचिए-उपचित-मांस के उपचय से उपचित अथवा पुष्ट / महाकाए-महाकाय--प्रौढ़ / दुज्झाओ : दोह्या : दो अर्थ-(१) दुहनेयोग्य (2) दोहनकाल-जैसे इन गायों के दहने का समय हो गया है। दम्मा. दम्या-दमन करने योग्य, बधिया (खस्सी) करने योग्य या नाथने योग्य / वाहिमा-वाह्य-गाड़ी का भार ढोने के समर्थ। रहजोग्गरथयोग्य-रथ में जोतने योग्य / गोरहा : दो अर्थ-(१) तीन वर्ष का बछड़ा अथवा (2) जो बैल 17. दशवं. पत्राकार (प्राचार्यश्री प्रात्मारामजी म.), पृ. 666 18. (क) दशवै. (मुनिश्री संतबालजी), पृ. 93 (ख) दशव. पत्राकार (प्राचार्यश्री प्रात्मारामजी म.) पत्र 668, 671 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org