Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 510
________________ (7/B) 524 गा.४ गा.१० 486 382 323 185 280 201 or r 510 472 444 428] वग्णियगतेण हत्थेणं वत्थगंधमलंकार वयं च वित्ति लब्भामो वयछक्कं कायछक्कं+ वहणं तसथावराणं होइ वाउक्कातिए जीवे ण सद्द० + वाउक्कातिए जीवे सद्द०+ वाऊ चित्तमंतमक्खायाx वाप्रो वुटु व सीउण्हं वाहिनो वा अरोगी वा विक्कायमाणं पसलं विडमुब्भेइमं लोणं विणएण पविसिता विणए सुए तवे य विणयं पि जो उवाएण वितहं पि तहा मुत्ति विभूसा इस्थिसंसग्गी विभूसावत्तियं चेयं विभूसावत्तियं भिक्खू विरूढा बहुसंभूया विवत्ती अविणीयस्स विवत्ती बंभचेरस्स विवित्ता य भवे सेज्जा विविहगुणतवोरए य निच्च विसएसु मणुण्णेसु वीसमंतो इमं चिते सइ काले चरे भिक्खू सोवसंता अममा अकिंचणा सक्का सहेउं आसाए कंटया सखुड्डग-वियत्ताणं सज्झाय-सज्झाणरयस्स ताइणो सन्निहिं च न कुव्वेज्जा सन्निही गिहिमत्ते य समणं माहणं वावि""उवसं० (तृ. च.) समाए पेहाए परिव्वयंतो समावयंता वयणाभिघाया 326 [दशवकालिकसूत्र समुदाणं चरे भिक्खू 238 सम्मद्दमाणाणि पाणाणि 111 सम्मद्दिट्टी सया अमूढे 527 सयणासण-वत्थं वा सुवक्कसुद्धि समुपेहिया मुणी 386 सब्वे जीवा वि इच्छंति+ 273/B ससिणिद्धण हत्थेण ससरवखेण हत्थेण 117 संडि संखडि बूया 368 संघट्टइत्ता काएणं संजमे सुटिअप्पाणं संतिमे सुहुमा पाणा घसासु 324 संतिमे सुहुमा पाणा तसा 286 संथार-सेज्जाऽऽसणभत्तपाणे 466 संपत्ते भिक्खकालम्मि संवच्छरं वा विपरं पमाणं संस?ण हत्थेण साणं सूइयं गावि साणी-पावार-पिहियं 100 सालुयं वा विरालियं 231 साहट्ट निक्खिवित्ताणं 112 साहवो तो चियत्तेणं 208 सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहि सिणाणं अदुवा कक्कं 326 सिणेहं पुप्फसुहुमं च 403 सिया एगइप्रो लद्ध लोभेण 244 सिया एगइयो लद्ध विविहं 246 सिया य गोयरग्गगो 195 सिया य भिक्खु इच्छेज्जा 200 सिया य समणट्ठाए सिया हु सीसेण गिरिपि भिदे सिया हु से पावय नो डहेज्जा 458 __ सीओदगं न सेवेज्जा 364 __ + इस चिह्न से अंकित सूत्र अधिकपाठात्मक, तथा - इस चिह्न से अंकित सूत्र गद्यपाठात्मक समझने चाहिए। -सं. 64 328 366 489 320 440 516 446 207 219 467 266 450 412 223 466 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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