Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 491
________________ द्वितीय चूलिका : विविक्तचर्या] [409 * बाह्मविविक्तचर्या में भी आहार, विहार, निवास, व्यवहार, भिक्षा, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग त्याग, तप, नियम आदि प्रवृत्तियों में सांसारिक जनों की प्रवृत्तियों से पृथक्, एकान्त-आत्महित कारी, विवेकयुक्त तथा शास्त्रोक्त मार्ग-सम्मत चर्या का निर्देश किया है। * प्रतिस्रोतगामी बनने के लिए बाह्य विविक्त चर्या के कुछ निषिद्ध प्राचरण भी बताए हैं, जैसे गृहस्थों को वयावृत्य, वन्दना, पूजा, अभिवादन, संसर्ग, सहनिवास न करना आदि / * दोनों प्रकार को विविक्त चर्याओं का मुख्य उद्देश्य समस्त दुःखों से मुक्त होना है, जो प्रात्मा की सतत रक्षा करने से ही संभव है / इससे पूर्व प्रात्मरक्षा के उत्तम उपाय बताए हैं / * कुल मिला कर प्रस्तुत चूलिका में विविक्त चर्या के सभी पहलुओं का सांगोपांग चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। * इस चूलिका को कोई श्रुतकेवलिभाषित, कोई केवलिभाषित और कोई विहरमान तीर्थकर सीमंधरस्वामी से प्राप्त और एक साध्वी द्वारा श्रुत मानते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535