________________ 332] दशवकालिकसूत्र अकिंचन का अर्थ होता है-जो हिरण्य प्रादि द्रव्यकिचन और मिथ्यात्वादि भावकिंचन से रहित होता है। अब्भपुडावगमे : अनपुट से वियुक्त होने पर / बादल आदि का दूर होना, या हिम, रज, तुषार, कुहासा आदि सब अभ्रपुटों से वियुक्त होना / अष्टम अध्ययन : आचार-प्रणिधि समाप्त / / 75. पंचवि आउधाणि सुविदिताणि जस्स सो समत्तमायुधो। (ख) स्योमलो पावमुच्यते / दुषखं सारीर-माणसं सहतीति दुक्खसहो / णिमम्मते अममे / अम्भस्स पुडं बलाहतादि, अब्भपुडस्स अवगमोहिम-रजो-तुसार-धूमिकादीण पि अवगमो। .. च., पृ. 201 (ग) दुक्खमहः परिषहजेता। - हा. वृ., प. 238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org