________________ [दशवकालिकसूत्र करना आदि। गुरु-प्राज्ञा को हीन (हेय समझ कर टालमटोल) करने वाला, यथासमय पालन न करने वाला / सुयत्थधम्मा : भावार्थ-(१) गीतार्थ, या (2) जिसने अर्थ और धर्म अथवा धर्म का अर्थ सुना है / / / नवम अध्ययन : विनय-समाधि : द्वितीय उद्देशक समाप्त / / 17. (क) दशवं. (प्रा. अात्मा.), पृ. 897 (ख) ऋद्धिगौरवमति:-ऋद्धिगौरवाभिनिविष्टः। -हारि, वृत्ति, पत्र 251 (ग) 'जो मतीए इड्ढि-गारवमुबहति / ' -अगस्त्यचूणि (घ) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. 447 (ड) साहसिक:--अकृत्यकरणपरः। -हारि. वृत्ति, पत्र 251 (च) 'रभसेणाकिच्चकारी साधसो। पेसणं जधाकाल मुपपादयितुमसत्तो होणपेसणो / सुतो अत्थो धम्मो जेहिं ते सुत्तत्थधम्मा।' -अगस्त्य चूर्णि (छ) हीनप्रेषणः हीनगुर्वाज्ञापरः / श्रुतधर्मार्था गोतार्था इत्यर्थः / -हारि. वृत्ति, पत्र 251 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org