________________ 212] दशवकालिकसूत्र गृहस्थ, साधु को देखकर उन याचकों को दान न दे, तो इससे साधु को अन्तराय लगने की संभावना है, (3) धर्मसंघ की लोगों में निन्दा भी हो सकती है / '5 / अम्गलं प्रादि शब्दों के अर्थ अग्गलं : दो प्रर्थ-अर्गला-पागल या भोगल या सांकल / फलिह: परिघ द्वार को दृढ़ता से बन्द करने के लिए उसके पीछे दिया जाने वाला फलक / 6 सचित्त, अनिवृत्त, प्रामक एवं प्रशस्त्रपरिणत के ग्रहण का निषेध 227. उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं / 228. तारिस भत्तयाणं तु संजयाण प्रकप्पियं। देतियं पडिआइक्खे न मे कम्पइ तारिसं // 15 // 229. उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं का मगदंतियं / अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं, तं च सम्मद्दिया दए / / 16 / / 230. तारिसं भत्तपाणं तु संजयाण अपियं / दंतियं पडिआइक्खे न मे कप्पइ तारिसं // 17 // > 231. सालुयं वा विरालियं कुमुउप्पलनालियं / मुणालियं सासवनालियं उच्छुखंडं अनिव्वुडं // 18 // 232. तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा। अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवज्जए॥१९।। 233. तरुणियं वा छेवाडि ] आमियं भज्जियं सई। देंतियं पडिलाइवखे न मे कापड तारिसं।२०।। 15. (क) दशवं. (संतबालजी), पृ. 64 (ख) दशवै. (प्राचार्य श्री प्रात्मा.), पृ. 261-262-263 (क) 'गरद्दारकवाडोत्थंभणं फलिहं'। -अ. चू., पृ. 127 (ख) अर्गलं कपाटपट्टद्वय-दृढसंयोजककाष्ठादिनिर्मितकीलविशेषं शृखलादि च / -दशव. आचारमणिमंजषा टीका, भा. 1, पृ. 507 पाठान्तर --- छिवाडि / अधिक पाठ-- > इस प्रकार के चिह्न से अंकित गाथा के बाद दो गाथाएँ अधिक मिलती हैं उप्पलं पउमं वा वि, कुमुझं वा मगदंति। अन्नं वा पुप्फसच्चित्तं तं च संघट्टिया दए // 18 // तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिों / दिति पडिआइक्खे, न मे कम्पइ तारिसं // 19 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org