________________ 24] [दशवकालिकसूत्र प्रकार से अथवा कैसा भोजन मिले तो मैं लूगा, इस प्रकार के अभिग्रहपूर्वक प्राप्त आहार में सन्तुष्ट अनुरक्त रहे / (ङ) पाहार की गवेषणा में नाना प्रकार के वृत्तिसंक्षेप से प्राप्त पिण्ड में रत रहे / 65 (4) दंता= दान्ता:पांच अर्थ-(क) इन्द्रियों और मन के विकारों को दमन करने वाला, (ख) इन्द्रियों को दमन (नियंत्रित) करने वाला, (ग) संयम और तप से आत्मा को दमन करने वाला, (घ) क्रोध, मान, माया, लोभ इत्यादि अध्यात्मदोषों के दमन करने में तत्पर और (ङ) जो आत्मा से आत्मा का दमन करता है। तेण वच्चंति साहुणो : प्राशय-इस उपसंहारात्मक वाक्य का प्राशय यह है कि इस अध्ययन में अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्षरूप से उल्लिखित महत्त्वपूर्ण गुणों से युक्त जो साधक हैं, वे इन्हीं गुणों के कारण साधु कहलाते हैं। // वशवकालिकसूत्र : प्रथम द्रुमपुष्पिका अध्ययन समाप्त / / 65. नाना अनेकप्रकारोऽभिग्रहविशेषात् प्रतिगृहमल्पाल्पग्रहणाच्च पिण्ड-ग्राहारपिण्डः, नाना चासौ पिण्डश्च नानापिण्डः, अन्तप्रान्तादि तस्मिन् रता-~अनुगवन्तः / -हारि. वत्ति, पत्र 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org