________________ [दशवकालिकसूत्र अपने श्रमगधर्म में दृढ़ हो गए। उग्र तपश्चरण एवं संयम पालन किया। इसी कारण उन्हें 'पुरुषोत्तम' कहा गया / 52 सर्वोत्तम पुरुष तो वह है, जो चाहे जैसी विकट एवं मोहक परिस्थिति में भी विचलित न हो, किन्तु वह भी पुरुषोत्तम है जो प्रमादवश एक बार डिग जाने पर भी सोच-समझ कर संयमधर्म के नियमों-व्रतों में पुनः सुस्थिर हो जाए / अन्त में वे अनुत्तर सिद्धिगति को प्राप्त हुए।५३ सारांश यह है—कदाचित् मोहोदयवश किसी साधक के मन में विषयभोगों का विकल्प पैदा हो जाए तो वह स्वाध्याय, सदुपदेश या ज्ञान बल से या शुभ भावनाओं से रथनेमि के पथ का अनुसरण करे। // द्वितीय : श्रामण्यपूर्वक अध्ययन समाप्त // 52. (क) दशवं. (मुनि नथमलजी) पृ. 36 (ख) प्राचार्य श्री आत्मारामजी सम्पादित, पृ. 32-33 53. (क) प्राचारमणि मं. टीका, भा. 1, पृ. 150 (ख) उत्तराध्ययन, अ, 22147-48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org