________________ 52] [दशवकालिकसूत्र क्रम नाम अर्थ अनाचार का कारण 52. दन्तवन दतीन की लकड़ी से दांतुन करना वनस्पतिकायवध 53. गात्राभ्यंग शरीर पर तेल आदि की मालिश करना विभूपा, शरीरपुष्टि से ब्रह्मचर्यबाधा 54, विभूषा शृगार प्रसाधन करना, साजसज्जा वस्त्राभूषण विभूषा इसके अतिरिक्त सूत्रकृतांग (श्रु. 1, अ. 6,) में धावण (वस्त्रादि धोना) रयण (रंगना) आदि कुछ अनाचार बताये हैं। इससे सिद्ध होता है, अनाचारों की यह संख्या अन्तिम नहीं, उदाहरण स्वरूप है / अन्य अनेक अनाचार भी हो सकते हैं / उत्सर्ग विधि से जितने भी अग्राह्य, अभोग्य, अनाचरणीय प्रकरणीय कार्य बताए हैं, वे सब अनाचार या अनाचीर्ण है / 12 12. (क) सूत्रकृतांग 1, 9 / 12, 14, 16, 17, 18, 20, 29 (ख) दशवै. अ. 6, गा. 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org