________________ [171 पंचम अध्ययन : पिण्डवणा] [114] पुराकर्म-कृत (साधु को ग्राहार देने से पूर्व ही सचित्त जल से धोये हुए) हाथ से, कड़छी से अथवा बर्तन से (मुनि को भिक्षा) देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का पाहार मेरे लिए कल्पनीय (ग्रहण करने योग्य) नहीं है। (अर्थात्---मैं ऐसा दोषयुक्त आहार नहीं ले सकता।) / / 32 // [115] सचित्त जल से गीले (ग्रा) हाथ से, कड़छी से अथवा बर्तन से (पाहार) देती हुई (महिला) को साधु निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्राह्य (कल्पनीय) नहीं है // 33 // [116] सस्निग्ध हाथ से, कड़छी से या बर्तन से यदि कोई महिला आहार देने लगे तो उसे निषेध कर दे कि मेरे लिए ऐसा आहार ग्राह्य नहीं है / / 34 / [117] सचित्त रज से भरे हुए हाथ से, कड़छी से या बर्तन से (साधु को) आहार देती हुई स्त्री से माधु निषेध कर दे कि ऐसा (सदोष अाहार) लेना मेरे लिए शक्य (कल्प्य) नहीं है / / 3 / / [118] सचित्त मिट्टी से सने हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से (साधु को आहार) देती हुई महिला को मुनि निषेध करे कि ऐसा आहार मैं नहीं ले सकता // 36 // [116] सचित्त ऊपर (भार) मिट्टी से भरे हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई स्त्री से साधु कहे कि ऐसा पाहार मैं ग्रहण नहीं कर सकता // 37 / / [120] हरिताल से भरे हुए हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से आहार देती हुई दात्री से साधु निषेध कर दे कि ऐसा पाहार मेरे लिए ग्राह्य (कल्पनीय) नहीं है / / 38 / / [121] हिंगलू से भरे हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से पाहार देती हुई महिला से साधु निषेध कर दे कि मेरे लिए ऐसा आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है // 36 / / [122] मेनसिल से युक्त हाथ, कड़छी या बर्तन से पाहार देती हुई दात्री से साधु निषेध कर दे कि मैं ऐसा आहार नहीं ले सकता // 40 / / [123] अंजन से युक्त हाथ, कड़छी या बर्तन से पाहार देती हुई महिला से साधु कहे कि मैं ऐसा आहार ग्रहण नहीं कर सकता / / 41 / / [124] सचित्त लवण से भरे हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से ग्राहार देती हुई स्त्री से साधु निषेध कर दे कि मैं ऐसा आहार ग्रहण नहीं कर सकता / / 42 / / [125] सचित्त गैरिक (गेरू) से सने हुए हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से आहार देती हुई महिला से साधु स्पष्ट निषेध कर दे कि ऐसा पाहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है / / 43 // [126] सचित्त पीली मिट्टी (वणिका) से भरे हुए हाथ, कड़छी अथवा भाजन से आहार देती हुई महिला से साधु इन्कार कर दे कि मैं ऐसा पाहार नहीं ले सकता // 44 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org