________________ 194] [वशवकालिकसूत्र बहु-उज्शन-धर्मक-जिनमें खाद्यांश कम हो और त्याज्यांश अधिक हो ऐसे फल या फलियाँ / ये सब पक्व होने पर भी ग्राह्य नहीं होते। पान-ग्रहण-निषेध-विधान 188. तहेवुच्चावयं पाणं अदुवा वारधोवणं / संसेइमं चाउलोदगं अहुणाधोयं विवज्जए / / 106 // 189. जं जाणेज्ज चिराधोयं मईए सणेण वा। पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा, जं च निस्संकियं भवे // 107 // 190. अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्ज संजए। मह संकियं भवेज्जा प्रासाइत्ताण रोयए // 108 / / 191. "थोवमासायणद्वाए हत्थगम्मि दलाहि मे।" मा मे प्रच्चंबिलं पूई नालं तण्हं विणेत्तए // 109 // 162. तं च अच्चंबिलं पूई नालं तण्हं विणेत्तए / बेतियं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं // 110 // 193. तंच होज्ज अकामेणं विमणेण परिच्छियं / तं प्रप्पणा न पिबे, नो वि अन्नस्स दावए / / 111 / / 194. एगंतमवक्कमित्ता प्रचित्तं पडिलेहिया। जयं परिद्ववेज्जा परिठप्प पडिक्कम्मे // 112 // [188] इसी प्रकार (जैसे प्रशन के विषय में कहा है, वैसे ही) उच्चावच (अच्छा और बुरा) पानी, अथवा गुड़ के घड़े का धोवन, आटे का धोवन, चावल का धोवन, इनमें से यदि कोई तत्काल का धोया हुआ (धौत) हो, तो मुनि उसे ग्रहण न करे / / 106 / / [186-190] यदि अपनी मति और दृष्टि से, पूछ कर अथवा सुन कर जिस धोवन को जान ले कि यह बहुत देर का धोया हुआ है तथा निःशंकित हो जाए तो जीवरहित (प्रासुक) और परिणत (शस्त्रपरिणत) जान कर संयमी मुनि उसे ग्रहण करे। यदि यह जल मेरे लिए उपयोगी होगा या नहीं ? इस प्रकार की शंका हो जाए, तो फिर उसे चख कर निश्चय करे // 107-108 / / [191] (चख कर निश्चय करने के लिए वह दाता से कहे-) 'चखने के लिए थोड़ा-सा यह पानी मेरे हाथ में दो।' यह पानी बहुत ही खट्टा, दुर्गन्धयुक्त है और मेरी तृषा (प्यास) बुझाने में असमर्थ होने से मेरे लिए उपयोगी न हो तो मुझे ग्राह्य नहीं / / 10 / / 79. .."एताणि सत्थो व हताणि वि अन्न मि समुदाणे फासुए लब्भमाणे ण गियिव्वाणि / " ---जिन चूर्णि, पृ. 184-185 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org