________________ 178] [दशवकालिकसूत्र 139. थणगं पेज्जमाणो दारगं वा कुमारियं / तं निक्खिवित्तु रोयंतं, आहरे पाणभोयणं // 57 // 140. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं / देतियं पडिआइक्खे, न में कप्पइ तारिसं // 58 // [136] गर्भवती स्त्री के लिए (विशेषरूप से) तैयार किये गए विविध पान (पेय पदार्थ) और भोजन (भोज्य पदार्थ) यदि उसके उपभोग में आ रहे हों, तो मुनि ग्रहण न करे, किन्तु यदि वे पान-भोजन) उसके खाने से बचे हुए हों तो उन्हें ग्रहण कर ले / / 54 // [१३७-१३८]-कदाचित् कालमासवती (पूरे महीने वाली) गर्भवती महिला खड़ी हो और श्रमण (को आहार देने) के लिए बैठे; अथवा बैठी हो और खड़ी हो जाए तो वह (उसके द्वारा दिया जाने वाला) भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्प्य (अग्राह्य) होता है। अतः साधु (आहार) देती हुई (उस गर्भवती स्त्री) से कह दे कि ऐसा आहार मेरे लिए कल्पनीय (ग्राह्य) नहीं है। // 55-56 // [१३६-१४०]-~-बालक अथवा बालिका को स्तनपान कराती हुई महिला यदि उसे रोता छोड़ कर भक्त-पान लाए तो वह भक्त-पान संयमियों के लिए अकल्पनीय (अग्राह्य) होता है। (अतः साधु) पाहार देती हुई (उस स्तनपायिनी महिला) को निषेध करे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है / / 57-58 / / विवेचन-अहिंसा की दृष्टि से आहारग्रहण-निषेध-प्रस्तुत 5 सूत्र गाथाओं (136 से 140 तक) में तीन परिस्थितियों में दात्री महिला से आहार लेने का निषेध किया गया है १--यदि गर्भवती स्त्री के लिए निष्पन्न प्राहार उसके उपभोग में आने से पहले ही दिया जा रहा हो। २–पूरे महीने वाली गर्भवती महिला साधु को आहार देने हेतु उठे या बैठे तो। ३-शिशु को स्तनपान कराती हुई महिला उसे स्तनपान कराना छुड़ा कर उसे रोता छोड़ कर साधु को आहार-पानी देने लगे तो। भज्जमाणं विवज्जेज्जा : अभिप्राय-गर्भवती महिला के लिए जो खास पाहार बना हो साधुसाध्वी को उसके उपभोग करने से पहले वह पाहार नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उसका खास आहार साधु या साध्वी द्वारा ले लेने से गर्भपात या मरण हो सकता है।८ 58. इमे दोसा--परिमितमवणीतं, दिण्णे सेसमपज्जत्तं ति डोहलस्साविगमे मरणं, गब्भपतणं वा होज्जा, तीसं तस्स वा गब्भस्स सण्णीभूतस्स अपत्तियं होज्ज। --अगस्त्य चूणि, पृ. 111 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org