________________ 44] दिशवकालिकसूत्र राजीमती के सुभाषित का परिणाम 15. तीसे सो क्यणं सोच्चा, संजयाए सुभासियं / ___ अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ // 10 // [15] उस संयती (संयमिनी राजीमती) के सुभाषित वचनों को सुन कर वह (रथनेमि) धर्म में उसी प्रकार स्थिर हो गया जिस प्रकार अंकुश से नाग (हाथी) हो जाता है। विवेचन–राजीमती के सुभाषित वचनों का प्रभाव प्रस्तुत 10 वी गाथा में राजीमती के पूर्वोक्त प्रेरणादायक सुभाषित वचनों का रथनेमि के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा, उसी का यहाँ प्रतिपादन है। सुभासियंः सुभाषितः दो विशेषार्थ-(१) संवेग-वैराग्य उत्पन्न करने के कारणभूत सुभाषित (अच्छे कहे हुए), संसार भय से उद्विग्न करने वाले सुभाषित / 48 संपडिवाइप्रोः दो रूप-सम्प्रतिपादित, अर्थात्-सम्यक् रूप से श्रमणधर्म के प्रति गतिशील हो गया / (2) सम्प्रति पातित सम्यकप से पुनः संयम धर्म में व्यवस्थित (सुस्थिर) हो गया। जिस प्रकार अंकुश से मदोन्मत्त हाथी का मद उतर जाता है उसी प्रकार राजीमतीरूपी महावत के वचनरूपी अंकुश से रथनेमिरूपी हाथी का विषयवासनारूपी काममद उत्तर गया और वे जिनोक्त संयमधर्म में सुस्थित अथवा प्रवृत्त हो गए। उपदेश की सफलता-एक सुसंयमिनी साध्वी के वचनों की सफलता इस बात को सूचित करती है कि स्वयं श्रमणभाव एवं कामनिवारण में दृढ़ चारित्रसम्पन्न प्रात्मा का प्रभाव अवश्य होता है। धैर्यशाली हाथी के समान, धैर्यशाली कुलीन साधक-हाथी जिस प्रकार स्वभाव से ही धैर्यवान् होता है, इसलिए इशारे से वश में हो जाता है। कुलीन एवं धैर्यवान् रथनेमि ने भी राजीमती जैसी एक सुसंयमिनी की शिक्षा को शीघ्र और नम्रतापूर्वक स्वीकार कर लिया / समस्त साधकों के लिए प्रेरणा 16. एवं करेंति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा। विणियति भोगेसु, जहा से पुरिसोत्तमो // 11 // -त्ति बेमि। // बिइयं सामग्णपुव्वगज्मयणं समत्तं // 48. (क) “सुभाषितं संवेगनिबन्धनम् / " -हारि. वृत्ति, पत्र 97 (ख) "संसारभउब्वेगकरेहिं वयणे हिं।" -जिन. चूणि, पृ. 91 49. (क) दशवै. (प्राचार्य आत्मारामजी) पृ. 30 (ख) दशवै. (प्राचारमणिमंजूषा टीका) भा. 1 पृ. 147 50. वही, (प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी) प्र. 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org