Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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विषय
२१ ग्यारहवें सत्रका अवतरण, ग्यारहवां मूत्र और छाया। ३३३ २२ संयमसे च्युत लोगोंकी सर्वत्र निन्दा होती है । ३३३-३२५ २३ बारहवें सूत्रका अवतरण, बारहवां मूत्र और छाया । ३३५ २४ कितनेक अभागे साधु, उपविहारियों के साथ रहते हुए भी
शीतलविहारी होते हैं, विनयशील साधुओंके साथ रहते हुए भी अविनयी होते हैं, विरतोंके साथ रहते हुए भी अविरत होते हैं, संयमाराधकोंके साथ रहते हुए भी असंयमी होते हैं । अतः संयमी साधुओंकी संगति प्राप्त कर सर्वदा संयमाराधनमें तत्पर रहना चाहिये ।
३३५-३३६ ॥ इति चतुर्थ उद्देश सम्पूर्ण ॥ ४ ॥
॥ अथ पञ्चम उद्देश॥ १ चतुर्थ उद्देशके साथ पश्चम उद्देशका सम्बन्ध-कथन । प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया।
३३६-३३८ उन मुनियोंको अनेक स्थानोंमें अनेक प्रकारके उपसर्ग
प्राप्त होते हैं, उन उपसर्गों को वे मुनि अच्छी तरह सहें। ३३८-३३९ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया। ३३९-३४० ४ जैनागमके ज्ञाता मुनि, लोकस्वरूपको तथा पूर्वादि दिग्वि
भागोंको भी अच्छी तरह जान कर दयाधर्मकी प्ररूपणा करे और धर्मानुष्ठानका फल कहे ।
३४० ५ तृतीय स्त्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया। ६ वह आगमज्ञ मुनि, सुननेकी इच्छावाले उत्थित, अनुत्थित
सभी प्रकारके लोगोंको शान्ति, विरति, उपशम, निर्वाण, शौच, आर्जव, मादव और लाघवकी व्याख्या आगमानुसार करके समझावे।
३४१-३४२
श्री. मायाग सूत्र : 3