Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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[18]... प्रथम परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि : शासन प्रभावकः
यद्यपि जिन शासन शाश्वत होने से तथा सर्वज्ञ तीर्थंकर देवाधिदेव के द्वारा प्ररुपित होने से स्वयं ही दीप्तिमान है तथापि इस शासन में चतुर्विध संघ (साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका) में कर्मो के विशिष्ट क्षयोपशम से जिस किसी आत्मा में तप, जप, विद्या, लब्धि, वाद, प्रवचन, धर्मकथा, सिद्धांत ज्ञान, ज्योतिष, कवित्व, योगसाधनादि गुणों में से जो गुण विशिष्ट रुप से प्रगट हो जाय; जिससे स्वतीर्थ (जिन प्रवचन/शासन) की उन्नति हो और जैन-जैनेतर, राजा-प्रजा, आबाल-गोपाल सभी लोग प्रभावित होकर मुक्त कंठ से जिन शासन की उद्भावना/प्रशंसा करें, करावें और अनुमोदना करें, उसे 'शासन प्रभावना'कहते हैं।
इस प्रकार जिनशासन की प्रख्याति या जयजयकार करने-कराने वाले और हर संभव प्रयास से शासन मालिन्य (जिनशासन की निन्दा) को रोकनेवाले महान व्यक्तित्व को 'शासन प्रभावक' कहते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोश में (1) प्रावचनिक (2) धर्मकथक (3) वादी (4) नैमित्तिक (5) तपस्वी (6) विद्याधारी (7) सिद्ध और (8) कवि - ये दस प्रकार के प्रभावक दर्शाये हैं। तथा प्रकारान्तर से (1) अतिशय धारी , (विशिष्ट ज्ञान या लब्धिवाला) (2) धर्मकथक (3) वादी (4) आचार्य (5) तपस्वी (6) नैमित्तिक (7) विद्याधारी और (8) राजवल्लभ या गणप्रिय (लोकप्रिय) - ये आठ प्रकार के प्रभावक बताये हैं। और प्रकारन्तर से (1) आगमधर (2) धर्मक्रियापालक (3) धर्मकथक (4) वादी (5) कवि (6) तपस्वी (7) सिद्धांत ज्ञाता (8) लब्धिधारी (9) नैमित्तिक और (10) विद्यासिद्ध -ये दस प्रकार के प्रभावक दर्शाये हैं ।98
उपर्युक्त सभी दृष्टिकोणों से आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी अपने बायामी व्यक्तित्व से "तित्थयरसमो सूरि"-इस आगमवचन को, सभी दृष्टिकोणों से जीवनपर्यन्त सर्वात्मना सत्य सिद्ध करने वाले "यावच्चन्द्र-दिवाकरौ" दिगन्त तक समस्त संसार में जिनशासन का अक्षय जयनाद करने-कराने वाले स्वनामधन्य महान शासनप्रभावक हैं। अतः यहाँ कुछ शीर्षकों के अन्तर्गत इनके शासनप्रभावक कार्यो एवं गुणों का विहंगावलोकन कराने का प्रयास कराना सार्थक होगा। आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि कृत प्रतिष्ठाएँ एवं अंजनशलाकाएँ :
विश्व के प्रांगण में प्रवाहमान जगद्भाव में कल्याणभावप्रदायक जिनमंदिर आत्मशांति का निकेतन है। दुर्भावना के कीचड को दूर करने के लिए जिनमंदिर सतत प्रवाहमान सरिता हैं । आत्मोन्नति हेतु जिनमंदिर निश्कंटक राजमार्ग हैं । स्वयं की सदसत् प्रवृत्तिओं का आत्म निरीक्षण करने हेतु जिनमंदिर दिव्य दर्पण हैं। भावजागृति एवं आत्मा की सुषुप्त शक्ति को जगाने के लिए जिनमंदिर घंटाघर हैं । जिनमंदिर आध्यात्मिक और लोकोत्तर चेतनाशक्ति प्रदायक पावर हाऊस हैं । जिनमंदिर ज्ञानमार्गप्रदायक दीपक है । जिनमंदिर
कार है, सच्चा शिक्षक है, सही मार्गदर्शक है। जिनमंदिर जीवन साधना का सदुपदेशक है। जिनमंदिर सद्गुणों को समृद्ध करने हेतु सूर्य है। जिनमंदिर एक विशुद्ध, परम सुखद आलंबन एवं सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा केन्द्र हैं।
जिनप्रतिमा साक्षात् कल्पवृक्ष है । भव्य जीवों को मोक्षप्राप्ति हेतु सम्यग् आराधना का यही सर्वश्रेष्ठ आलम्बन है। अञ्जनशलाका, प्राण-प्रतिष्ठा की हुई प्रतिमा परमात्मस्वरूप को प्राप्त हो जाती है। अत: आचार्यश्रीने स्वयं के एवं भव्य जीवों के आत्म-कल्याण एवं आराधना के श्रेष्ठ आलंबनभूत अनेकों जिनमंदिरों का निर्माण करवाकर उनकी प्रतिष्ठा की और सैकंडो जिनप्रतिमाएँ भरवाकर उनकी अञ्जनशलाकाप्राणप्रतिष्ठा की।
आचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरि कृत प्रतिष्ठाएँ एवं अंजनशलाकाओंकी सूचि :1. जालोर के पास स्थित स्वर्णगिरि पर्वत पर अष्टापदावतार चौमुख मंदिर, यक्षवसति महावीर जिनालय, कुमारवसति, पार्श्वनाथ जिनालय
- ये तीन जिनालय प्राचीन हैं। वि.सं. 1933 के माघ शुक्ल प्रतिपदा को तीनों जिनालयों की पुनः प्रतिष्ठा की जिसका विशेष परिचय 'तीर्थोद्धार' के प्रसंग में दिया जा रहा हैं। जावरा (मालवा) में पारिख छोटमलजी जुहारमलजी के बनवाये श्री ऋषभदेवजी के जिनालय की प्रतिष्ठा और 31 जिन बिम्बोंकी अंजनशलाका की। कुक्षी (धार) के प्राचीन श्री शांतिनाथ जिनालय का जिर्णोद्धार करवाया व 24 देवगृहमों में विराजमान करने के लिये सं 1935
के वैशाख सु. सप्तमी को प्रतिमाओं की अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा की। 4. आहोर (राजस्थान) के श्री संघ के बनवाये सौध शिखरी जिनालय में वि.सं 1936 के माघ शुक्ल दशमी के दिन सोत्सव, प्राचीन
और प्रगटप्रभावी श्रीगोडी पार्श्वनाथ प्रभु की दिव्य, भव्य और मनोहर प्रतिमाजी विराजमान की। 5. श्री मोहनखेडा तीर्थ, (राजगढ (धार, मप्र) से डेढ मील पश्चिम दिशा) में श्री सिद्धाचलदिशि वन्दनार्थ आपके उपदेश से
राजगढ निवासी पोरवाड शा. लूणाजी संघवी द्वारा निर्मित जिनमंदिर में विशाल उत्सव सहित 41 जिनबिम्बों की अञ्जनशालाक
प्राणप्रतिष्ठा की तथा श्री आदिनाथादि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। 6. धामणदा (धार) में सं 1940 फा. सु. 3 के दिन श्री ऋषभदेवजी आदि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की। १०. अ.रा.पृ. 51438 97. अ.रा.पृ. 5/437 98. अ.रा.पृ. 5/928
99. श्रीमद्विजय राजेन्दसूरि स्मारक ग्रन्थ पृ. 127 से 131 Jain Education International
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