Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
View full book text
________________
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
द्वितीय परिच्छेद... [85]
अभिधान राजेन्द्र कोश : प्रथम भाग - विषयवस्तु परिचय
श्री अभिधान राजेन्द्र कोश के प्रथम भाग में मुखपृष्ठ के ब्राद अन्तर्पष्ठ है, जिसमें मंगलाचरण के रुप में णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स' -कहकर चरमतीर्थपति, वर्तमान-शासनपति जैनों के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर को नमस्कार किया है। तत्पश्चात् आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वर, आचार्य श्रीमद्विजय धनचन्द्र सूरीश्वर, आचार्य श्रीमद्विजय भूपेन्द्र सूरीश्वर, आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वर एवं आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी को उनके विशेषण क साथ नमस्कार किया गया है। तत्पश्चात् द्वितीयावृत्ति के प्रकाशन के उपदेशक के रुप में आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी के पट्टालंकार परमपूज्य तीर्थप्रभावक, साहित्यमनीषी, आचार्यदेव श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी एवं संयमवर: स्थविर मुनिराज श्री शांति विजयजी महाराज के उपदेश से 'अखिल भारतीय श्री सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय जैन श्वेतैम्बर त्रिस्तुतिक संघ' द्वारा प्रदत्त द्रव्यसहाय से अभिधान राजेन्द्र कोश प्रकाशन संस्था, अहमदाबाद' -ने श्री वीर संवत् 2513/ ईस्वी सन् 1986/श्री राजेन्द्रसूरि (स्वर्गवास) संवत् 78 में इस कोश की (पूरे सातों भागों की) 1050 प्रति प्रकाशित करवायी - ऐसा उल्लेख हैं।
अन्तर्पष्ठ के बाद इस कोश की द्वितीय आवृत्ति का प्राप्ति स्थान : श्री अभिधान राजेन्द्र कोश प्रकाशन संस्था C/o. श्री राजेन्द्र सूरि ज्ञान मन्दिर, श्री राजेन्द्र सूरि चौक, रतन पोल, अहमदाबाद; और 'मुद्रक - पं. मफतलाल झवेरचंद गांधी नयन प्रिंटिंग प्रेस, क. 261 गांधी रोड, ढींकवावाडी, अहमदाबाद-1' बताया गया है।
तत्पश्चात् पंडित शितिकण्ठ शास्त्री, श्री वसंतीलालजैन एवं रमेश आर झवेरी की कोश विषयक सम्मतियाँ हैं। इसके आगे गुरुदेव । श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज का रंगीन छायाचित्र हैं।
तत्पश्चात् 'कोश प्रकाशन संस्था' द्वारा दो पृष्ठों में द्वितीयवृत्ति' का प्रकाशकीय निवेदन हैं, जिसमें गुरुदेव एवं कोश के प्रति संक्षिप्त उद्गार, द्वितीयावृत्ति प्रकाशन का कारण, प्रकाशन का निर्णय, प्रकाशन में सहयोगी एवं प्रेरक आचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी एवं अन्य मुनि-मण्डल, साध्वी-मण्डल के प्रति आभार प्रदर्शन एवं द्वितीयावृत्ति के प्रकाशन के सुकृत-सहयोगी भाग्यशालियों की नामावली दी गयी हैं। - इसके बाद आचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी द्वारा लिखित द्वितीयावृत्ति की प्रस्तावना है जिसका परिचय इस शोधप्रबंध के इसी अनुच्छेद में यथास्थान दिया गया हैं। - इसके बाद गुरुदेव आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी
को इस कोश निर्माण में जिनका प्रशंसनीय भागीरथ सहयोग प्राप्त हुआ था । और जिनके सान्निध्य में इस कोश का संपादन, मुद्रण, प्रकाशन का कार्य प्रारंभ हुआ था उन पूज्यगुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के दीक्षोपसंपद् शिष्य पट्टप्रभाकर, चर्चाचक्रवर्ती, आगम रहस्यवेदी, श्रुतस्थविरमान्य, श्री सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय आचार्य श्रीमद्विजय धनचंद्र सूरीश्वरजी महाराज का रंगीन छायाचित्र हैं।
तत्पश्चात् श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय पट्टावली है जिसमें श्री महावीरस्वामी के शासन नायक पंचम गणधर श्री सुधर्मा सस्वामी से वर्तमानचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी तक के 72 आचार्यो की क्रमशः नामावली है जो इस शोध प्रबंध में प्रथम परिच्छेद में दी गयी हैं। - इसके बाद ऊपर श्री राजेन्द्र कोश के सातों भाग; बीच में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी एवं एक ओर क्रमशः आचार्य श्रीमद्विजय धनचंद्रसूरि, आचार्य श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरि, उपाध्याय मुनि श्री गुलाबविजयजी तथा दूसरी ओर उपाध्याय मुनि श्री मोहनविजयजी, आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी एवं आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचंद्रसूरि तथा विश्व-पूज्य गुरुदेव के बराबर नीचे वर्तमानचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी का समूह-छायाचित्र हैं।
___तत्पश्चात् मुनि यतीन्द्र विजयजी द्वारा 15 पृष्ठों में ग्रंथकर्ता आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी का संक्षिप्त जीवन-परिचय है जो मुनि यतीन्द्र विजय ने विक्रम संवत् 1969 में विजयादशमी के दिन वागरानगर (राजस्थान) में लिखा गया था, एसा इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होताहैं।88 हमने इस शोध प्रबंध के प्रथम परिच्छेद में इस जीवन-परिचय को आवश्यक संक्षेप-विस्तार के साथ लिखने का प्रयास किया हैं।
तत्पश्चात् श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय पट्टावली है जिसमें सुधर्मास्वामी से श्री विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी तक के 67 आचार्यो की नामावली है। इसके बाद उपाध्यायमुनि श्री मोहन विजयजी द्वारा लिखित प्रथम आवृत्ति की 35 पृष्ठीय प्रस्तावना दी है जिसका विशद परिचय हमने शोध-प्रबंध के इसी परिच्छेद में दिया है। इसके बाद श्री अभिधान राजेन्द्र कार्यालय, रतलाम (मालवा) द्वारा लिखित आभारप्रदर्शन है जिसमें कोश निर्माण का संक्षिप्त परिचय, कोश प्रकाशन : प्रथमावृत्ति मुद्रण का निर्णय, प्रकाशन-कार्य एवं कोश के प्रकाशन तथा प्रचार-प्रसार में सहयोगी मुनिराजों एवं सद्गृहस्थों के प्रति आभार व्यक्ति किया गया है एवं मालवा, गुजरात, मारवाड के सुकृत-सहयोगी संघो की नामावली दी गयी हैं।
इसके आगे आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी कृत 18 पृष्ठीय संक्षिप्त प्राकृत रुपावली देने के बाद मुनि श्री यतीन्द्र विजयजी एवं मुनि श्री दीपविजयजी द्वारा निर्मित 13 पृष्ठीय 'उपोद्घात', गुरुमहिमादर्शित 1 श्लोक एवं तीन परिशिष्टों के रुप में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी द्वारा निर्मित (1) 54 पृष्ठों में प्राकृत व्याकृति (2) 8 पृष्ठीय सिद्ध-हेमचन्द्र शब्दानुशासन के आठवें अध्याय रुप प्राकृत व्याकरण के प्राकृत सूत्रों की अकारादि अनुक्रमणिका एवं (3) 18 पृष्ठीय संक्षिप्त प्राकृत रुपावली दी गयी है जिसका प्रस्तुत शोध प्रबंध के इसी परिच्छेद में यथास्थान विस्तृत परिचय दिया गया हैं।
86. अंतिम संस्कृत प्रशस्ति-श्लोक ९ 87. कल्पसूत्रार्थप्रबोधिनी, जीवनपरिचय, पृ. 15 88. "नवरसनिधिविधुवर्षे, यतीन्द्रविजयेन वागरा नगरे।
अश्विनशुक्लदशम्यां, जीवनचरितं व्यलेखि गुरोः ॥ -अ.रा.भा.1/5
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org