Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 464
________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनशीलन पञ्चम परिच्छेद... [413] 5. इतर परम्पराएँ और जैनाचार | जब हम 'इतर परम्पराएँ' कहते हैं तो उसमें पूर्वोक्त परम्पराओं के अतिरिक्त वे सभी परम्पराएँ समाहित हो जाती हैं जो भारत या विश्व के किसी भी भाग में प्रचलित हों। इनमें पारसी, यहूदी, इस्लामिक, ईसाई आदि प्रमुख परम्पराएँ हैं, जो विदेशों में उदित हुई और विश्व में प्रचारित और प्रसारित हो गयीं। ये परम्पराएँ अपने उन सिद्धान्तो के कारण भारत में भी अपनायी गयीं जो भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के सिद्धान्तो से सामञ्जस्य रखते थे। - इसके समानान्तर भारत में भी कालक्रम से अनेक उपसम्प्रदायों का जन्म हुआ। इनमें सिक्ख सम्प्रदायने अपने सिद्धान्तों के कारण भारतीय परम्परा में विशेष स्थान प्राप्त किया। सिक्खों के गुरु महाराज नानक द्वारा जो प्रतिपादन किया है वह भी श्रमण और ब्राह्मण परम्पराओं को प्रतिबिम्बित करता है। सिक्ख धर्म में अहिंसा : ईसाई धर्म में अहिंसा :सिक्ख धर्म में गुरुनानकने भी कहा है - जो कोई भी ईसाने भी कहा है कि "त तलवारम्यान में रख लें क्योंकि मांस-मुर्गी आदि खाता है और मादक पदार्थो का सेवन करता है, जो लोग तलवारचलाते हैं वे सभी तलवारसे ही नष्ट किये जायेंगे।" उसका समस्त पुण्य नष्ट हो जाता है। यहूदी धर्म में यह कहा गया उसमें यह भी कहा है कि "तुम अपने दुश्मन से भी प्रेम करो, है कि "किसी आदमी के आत्म सम्मान को चोट नहीं पहुंचाना और जो तुम्हें सताते हैं उनके लिए भी प्रार्थना करो।"17 ईसाने चाहिए ।लोगों के सामने किसी आदमी को अपमानित करना उतना कहा है Do not kill18 ही बडा पाप है, जितना कि उसका खून कर देना। प्राणीमात्र जेनीसीस में कहा गया हैके प्रति निर्वैरभाव की प्रेरणा देते हुए कहा है कि "अपने मन में ___ When God appointed man's food. He किसी के प्रति वैर भाव मत रखो। इसी तरह लाओत्से भी कहते gave him every green heard yielding seed and हैं कि "जो लोग मेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, उनके प्रति the fruit of the trees saying, to you it shall भी मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ। कन्फ्यूशियसने भी कहा है कि be for neat.19 "जो चीज तुम्हें नापसंद है, वह दूसरे के लिए हरगिज मत करो।" बाईबल में कहा हैइस्लाम धर्म में अहिंसा : Shall keep the weale law and get "कुराने शरीफ' के मंगलाचरण में ही 'बिस्मिल्लाह effered in one point is guilty at all.20 रहीमानुर्रहीम' - कहकर अल्लाह को करुणा की मूर्ति बताया गया। 1. दरेक धर्मनी दृष्टिए अहिंसानो विचार, पृ. 33 है।' 'कुराने शरीफ' में अहिंसा का पालन करने का आदेश देते हुए 2. मेतलिया 58, आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, पृ.171 से उद्धृत कहा है- जो खुदा के पैदा किये हुए जानवरों के साथ रहम करता 3. तोरा-लेव्य व्यवस्था 19/17, आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, पृ.171 है, वह अपने साथ रहम करता है। जानवरों पर रहम करने का से उद्धृत इनाम इस दुनिया में भी है और मरने के बाद में भी मिलेगा। 4. ताओ तेहकिंग, आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, पृ.171 से उद्धत जानवरों को काटने के लिए रखना और काटना मना है।' जो कोई 5. आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, पृ.171 से उद्धृत अन्य प्राणियों के साथ दया का व्यवहार करता है, अल्लाह उस पर 6. कुरानेशरीफ 5/35 दया करता है। पैगम्बर साहब ने कहा है 7. वही, आयत 1/23 "किसी भी स्म में उनका (उन कुर्बान किये गये पशुओं 8. वही, आयत 5 का) मांस ईश्वर के पास नहीं पहुंचता, न ही उनका रक्त भी, किन्तु 9. वही, आयत 1/134, 11/135 दया ही साथ जाती है। कुरान-ए-शरीफ में मक्का की यात्रा के 10. वही, आयत 6/38, दरम्यान जानवरों को मारने का निषेध किया गया है। 2 11. अहिंसा और मार्गदर्शन, अंतिम पृष्ठ पारसी धर्म में अहिंसा : 12. कुराने शरीफ: सिरा उलमायद सिपारा, मंजलक आयत पारसी धर्म में कहा है- "जो गाय ढौर की जिंदगी को 13. आपा जरथुस्त्र, गाथा-32, 12 हँसी मजाक में बिना कारण हानि पहुँचाता है, तथा जो कृपण होता 14. वही, गाथा हा. 32; 12 है तथा दारुही (हिंसक मनुष्य) की सत्ता को चाहने वाला होता है, 15. वही, 34, 3 उनको ईश्वरबुरा हाजरमजह गिनता है। पारसी भाईयों का फरमान 16. 11/135 करते हुए 'गाथा' में आगे कहा है - 1. जीवजंतु की रक्षा करना। 17. बाईबल (मत्ती)-2/51, 52; 5/45, 46; लूका 6/27/37, अहिंसा दर्शन, 2. पशु हिंसा को अहुमझद (ईश्वर) बुरा मानते हैं ।।5 3. पशुओं को पृ. 6 से उद्धृत चारापानी देने में हुए प्रमाद के लिए सच्चे हृदय से बंदगी (पश्चाताप) 18. बाईबल, दश आज्ञाएँ करें। 19. Genisis - 1, 29, अहिंसा और मार्गदर्शन - अंतिम पृष्ट से उद्धृत 20. Bible अहिंसा और मार्गदर्शन - अंतिम पृष्ठ से उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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