Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 492
________________ अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन षष्ठ परिच्छेद... [439] सप्तम भाग : घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं। समय बड़ा बलवान है और शरीर बडा निर्बल। - अ.रा.पृ. 7/59; उत्तराध्ययन-416 संतोष परमं सौख्यम्। संतोष ही परम (सर्वश्रेष्ठ) सुख है। - अ.रा.पृ. 7/146; हिंगुल प्रकरण-1/14 नत्थि भयं मरणसमं । मृत्यु के समान कोई भय नहीं है। - अ.रा.पृ. 7/146; हिंगुल प्रकरण-1/14 एकम्मि खंभम्मि न मत्तहत्थी, वज्झन्ति बग्धा न य पंजरे दो ॥ एक खंभे से दो मदोन्मत हाथियों को नहीं बांधा जाता और न एक पिंजरे में दो सिंह रखे जाते हैं। - अ.रा.पृ. 7/181; बृहत्कल्प भाष्य-4410 दुक्खं लभ्भइ नाणं। ज्ञान कठिनाई पूर्वक प्राप्त होता है। - अ.रा.पृ. 71227; पंचवस्तुक सटीक-हार 4 मातृवत् परदाराँञ्च परद्रव्याणि लोष्ठवत् । पराई स्त्री को माता के समान एवं पराये दव्य (धन) को लोह/पत्थर तुल्य समझो। - अ.रा.पृ. 71273; आपस्तम्बस्मृति-10/11 न सत्यमपि भाषेत, परपीडाकरं वचः।। दूसरों को पीडा हो, ऐसा सत्य वचन भी मत बोलो। - अ.रा.पृ. 7273; योगशास्त्र-2/61 स्वाध्यायसमं तपो नास्ति । स्वाध्याय के समान कोई तप नहीं है। - अ.रा.पृ. 71292; दशपयन्नामूल सटीक सतां सङ्गो हि भेषजम् । सज्जनों का सत्संग ही एक महान औषध है। - अ.रा.पृ. 7/337; हितोपदेश-4/90 जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ। जो एक को जानता है, वह सबको जानता है। - अ.रा.पृ. 7/892; आचारांग-1/3/4/29 सव्वतो अप्पमत्तस्स णस्थि भयं । अप्रमत्त को कहीं से भी भय नहीं रहता। - अ.रा.पृ. 7/892; हिंगुल प्रकरण-1/14आचारांग-1/3/4/29 न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा। केवल पानी से स्नान करने पर अन्तरात्मा शुद्ध नहीं हो सकती। - अ.रा.पृ. 7/1004; हितोपदेश-4/87 | सूत्र सूत्रोक्तस्यैकस्या-प्यरोचनादक्षरस्य भवति नरः। | मिथ्याइष्टिं सूत्रं, हिनः प्रमाणं जिनाभिहितम्॥1॥ एकस्मिन्नप्यर्थः सन्दिग्धे प्रत्ययोऽर्हति नष्टः।। मिथ्या च दर्शनं तत्, स चादिहेतुर्भगवतीनाम् ॥2॥ - अ.रा.पृ. 7/35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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