Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 507
________________ [4]... परिशिष्ट अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन (ट) आयंमि चेइअहरं गंतूण चेइआई वंदिद्या, अजिअच्छय तिन्नि थुई परिहायंतिव्व कटुंति ॥ 28 ॥ -आवश्यक नियुक्ति (ठ) चेइयघस्वस्स एवा आगम्मुस्सग्गगुरु-समीवंमि अवहिविगिंचणियाए संतिनिमित्तं च थतोतच्छ ? परिहायमाणीयाउ तिन्निथुइ उवहंति-नियमेणं अजियसंतिच्छगमाइयाउकमसोतहिंनेउ। - बृहत्कल्पभाष्य (ड) साहुणो चेइयघरे वा उवस्सए वा ठियाहोद्या जइ चेइयघरे तो परिहायंतीहिं थुर्हि चेइयाई वंदित्ता आयरिय सगासे इरियावहि पडिक्कमिउं अविहि-परिठावणियाए काउसग्गं केति ताहे मंगलसंतिनिमित्तं इत्यादि। - बृहत्कल्पचूर्णि (ढ) तउ आगमस्स चेइयघरं गच्छंति चेइयाणं वंदित्ता संतिनिमित्तं अजिअसंतिथउ परिकड्विज्झइ तिन्नि थुइउ परिहायंतीउ कड्डिझंति तउ आगंतु अविहि परिठावणियाए काउसग्गं कीड़ ॥7॥ -विशेष आवश्यक चूर्णि (ण) ततो आगम्म चेइए गच्छंति चेइयाणि वंदित्ता संतिनिमित्तं अजियसंतिच्छउ परियदिज्झइ तिन्नि वा थुइउ परिहायंतीउ कड्डिद्यति । ___ -आवश्यक बृहद्वृत्ति-हरिभद्राचार्य (त) ततश्चैत्यगृहे आगत्य चैत्यानि वंदित्वा शांतिनिमित्तं शांतिस्तवं पठित्वा स्तुतिश्व हीयमाना भणित्वा? आचार्योंन्तिके आगत्य अविधिपारिष्टा-पानिकी कायोत्सर्ग कार्यः । ___ - आवश्यक लघुवृत्ति (थ) तत आगम्य चैत्यगृहे विपर्यस्तं देवा वंदित्वाचार्य-पार्श्वऽविधि पारिष्टापनिकायाः कायोत्सर्गः क्रियते ॥ ___ -आवश्यकाऽवचूरी (द) तत्रैव स्थंडिले क्रियमाणे उच्छानादयो दोषाः स्युः । ततो ग्राम मागम्य चैत्यं गत्वा नत्वा सान्त्यै तीर्थमजितशांतिस्तवो गुण्य तिन्नि वा थुइउ परिहायंतीउ कट्ठियति ततो गुस्पार्श्वमेत्याविधि परिस्थापनिकायाः कायोत्सर्गः कार्यः सप्तविंशतिः उच्छ्वासाः एष वृद्धसंप्रदाय: आचरणा पुनः उम्मच्छरयहरणेणं किर गमणागमणं आलोइधर ततो इरियावहिया पडिक्कमिधइतउवेइयाई वंदित्तेत्यादि। - आवश्यक दीपिका (ध) तत्रैव स्थंडिलोपांते कायोत्सग्गों न क्रियते उच्छानादिदोषसंभवात् तत आगम्य चैत्यगृहे विपर्यस्तं देवान्वंदित्वाचार्यपाइँऽविधिपारिष्टापानिकाया: कायोत्सर्गः क्रियते ।।26।। - ज्ञानसागरसूरिकृतावश्यकावचूरिः (वि.सं. 1940) (अन्यकृत गाथाओं की साक्षी भी है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524