Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
परिशिष्ट... [1]
परिशिष्ट क्र.2 त्रिस्तुतिक सिद्धांतोपदेश : शास्त्रीय प्रमाण
1. 'वंदन' शब्द स्तुति और नमस्कार दोनों का बोधक है, इसलिये देव-देवियों को वंदन करना श्रमणों के लिए
अनुचित हैं। अकारण उनसे सहायता, प्रार्थना-याचना करना भी अनुचित है। क्योंकि अवती देव-देवियों
को वंदन करना-आगम विरुद्ध है।' 1. (क) वंदण-वन्दन-न. । वाचा स्तुतौ ।
- ज्ञाताधर्मकथांग-1/1 विधिना कायवाङ्मनः प्रणिधनि
-प्रवचनसारोद्धार-1 शिरसाऽभिवादने-धर्मरत्न प्रकरण द्वितीय अधिकार अभिवादनस्तुत्यों इति । कायेनाभिवादने, वाचा स्तवने
___ - आवश्यक चूर्णि-1अ.. द्वादशावर्त्तदिना - स्थानांग-4/1, वन्द्यते स्तूयतेऽनेन प्रशस्तमनोवाक्कायव्यापारजालेनेति वन्दनम् ।
___-आवश्यक वृहवृत्ति-5 अ; 5 अ। - उद्धृत अ.रा.पृ. 6/768 (ख)वंदन - अभइवादनं प्रशस्तकायवाङ्मनः प्रवृत्तिरित्यार्थं ।
- ललित विस्तरा पृ. 262 (ग) आवश्यक दीपिका में भी यही अर्थ है। - धरती के फूल पृ. 178 (घ) भगवती सूत्रना प्रवचनों
- प्रवचन -4 पृ. 72 (ड) ललितविस्तरा पृ. 361 (च) असंजयं न वन्दिज्जा मायरं पियरं गुरुं। सेणावई पसत्थारं, रायाणं देवयाणी य ॥ 1105 ।।
- पट्टावली पराग संग्रह - पं. कल्याण विजयजी पृ. 515 (छ) असहिज्ज देवासुरनागसुवण्णजक्खरक्खसकिन्नरकिंपुरिस-गस्लगंधव्वमहोरगादिएहिं देवगणेहिणिग्गंथाओ पावयणाओ अणतिक्कमणिज्जा।
- भगवती सूत्र : द्वितीय शतक - पञ्चम उद्देश (ज) असहिज्जेति अविद्यमानं साहाय्यं परसाहायकम्, अत्यन्त-समर्थत्वात् येषान्ते,असाहाय्यास्ते च ते देवादयश्चेति कर्मधारयः अथवा
व्यस्तमेवेदम् तेन असहाय्या आपद्यपि देवादिसाहायकानपेक्षाः, स्वयं कृतं कर्म स्वयमेव भोक्तव्यमित्यदीनमनोवृत्तय इत्यर्थः । अथवा पाखण्डिभिः प्रारब्धाः सम्यकत्वा-विचलनं प्रति न परसाहायकमपेक्षन्ते, स्वयमेव तत्प्रतिघातसमर्थत्वात् जिनशासनात्यन्तभावितत्वाच्चेति ।
- नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरिकृत श्री भगवती सूत्र की टीका-2/5
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