Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 469
________________ [416]... षष्ठ परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 'अन्धस्य वर्तकी लाभः' को लोकोक्ति मानते हैं। समूह से लक्षणाजन्य कभी-कभी व्यंजनाजन्य कुछ विशिष्ट अर्थ निकलता श्री हरिवंशराय शर्माने अपने लोकोक्ति कोश में भमिका में है उसे 'मुहावरा' कहते है। कभी-कभी यह व्यंग्यात्मक होते हैं। लोकोक्ति के विषय में अनेक परिभाषाएँ उद्धृत की हैं इनकी गठन विशेष शब्दों या क्रिया-प्रयोगों के योग से होती है। लोकोक्ति का अर्थ है लोक या समाज में प्रचलित यदि इनकी गठन में किसी प्रकार का परिवर्तन कर दिया जाए तो उनके लाक्षणिक अर्थ का लोप हो जाता है और वे 'मुहावरे' नहीं उक्ति । इसी को कहावत कहते हैं। अंग्रेजी में इसे proverb रह जाते। डॉ. उदय नारायण तिवारीने लिखा है, "हिन्दी-उर्दू में कहते हैं। विभिन्न विद्वानोंने लोकोक्ति की परिभाषा भिन्न-भिन्न शब्दों लक्षण अथवा व्यञ्जना द्वारा सिद्ध वाक्यो को ही 'मुहावरा' कहते में की है। बेकन के अनुसार, भाषा के वे तीव्र प्रयोग, जो व्यापार और व्यवहार की गुत्थियों को काटकर तह तक पहुँच जाते है, लोकोक्ति 'Advanced Learners' Dictionary' में A.S. कहलाते हैं। डॉ. जोनसन कहते हैं कि वे संक्षिप्त वाक्य जिनको Hornby ने लिखा है कि 'मुहावरा' शब्दों का वह क्रम या समूह लोग प्रायः दोहराया करते हैं, लोकोक्ति कहलाते हैं । इरैस्मस का कथन है जिसमें सब शब्दों का अर्थ एक साथ मिलाकर किया जाता है। है कि वे लोकप्रसिद्ध और लोकप्रचलित उक्तियाँ, जिनकी एक विलक्षण Chamber's Twentieth CenturyDictionary के अनुसार, किसी ढंग से रचना हुई हो, कहावत कहलाती हैं। 'ऑक्सफोर्ड कनसाइज भाषा की विशिष्ट अभिव्यञ्जना-पद्धति को 'मुहावरा' कहते हैं। Oxford डिक्शनरी' में लिखा है कि सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त संक्षिप्त और Concise Dictionary के अनुसार, किसी भाषा की अभिव्यञ्जना के विशिष्ट रुप को 'मुहावरा' कहते हैं। एक अन्य पक्ष है कि विशिष्ट सारपूर्ण उक्ति को कहावत कहते हैं। चेम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार शब्दों विचित्र प्रयोगों एवं प्रयोग-सिद्ध विशिष्ट वाक्यांशों या विशिष्ट लोकोक्ति वह संक्षिप्त और लोकप्रिय वाक्य है जो एक कल्पित सत्य वाक्य-पद्धति को 'मुहावरा' कहते है। या नैतिक शिक्षा अभिव्यक्त करता है। एग्रीकोला कहते हैं कि कहावतें __'मुहावरा' की सबसे अधिक व्यापक तथा सन्तोषजनक वे संक्षिप्त वाक्य हैं जिनमें आदि पुरुषोंने सूत्रों की तरह अपनी अनुभूतियों परिभाषा डॉ. ओमप्रकाश गुप्तने निम्न शब्दो में दी है : . को भर दिया है। सर्वन्टीज के अनुसार कहावतें वे छोटे वाक्य हैं "प्रायः शारीरिक चेष्टाओं, अस्पष्ट ध्वनियों, कहानियों जिनमें लंबे अनुभव का सार हो। फ्लेमिंग की सम्मति में लोकोक्तियों और कहावतों अथवा भाषा के कतिपय विलक्षण प्रयोगों के में किसी युग अथवा राष्ट्र का प्रचलित और व्यावहारिक ज्ञान होता अनुकरण या आधार पर निर्मित और अभिधेयार्थ से भिन्न कोई है। जब हम उपर्युक्त परिभाषाओं तथा लोकोक्तियों के विन्यास तथा विशेष अर्थ देने वाले किसी भाषा के गठे हुए रूढ वाक्य, वाक्यांश प्रकृति पर विचार करते हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि या शब्द-समूह को मुहावरा कहते हैं।" लोकोक्ति कोश के आमुख में डॉ. हरिवंशराय शर्माने लोकोक्ति वे बोलचाल में बहुत आनेवाले ऐसे बंधे हुए चमत्कारपूर्ण वाक्य और मुहावरा में साधर्म्य वैधर्म्य भी निम्नांकित प्रकार से प्रस्तुत किया होते हैं जिनमें किसी अनुभव या तथ्य की बातें कही गई हों अथवा कुछ उपदेश या नैतिक शिक्षा दी गई हो, और जिनमें लक्षण या लोकोक्ति को वाक्य और मुहावरे को खंड-वाक्य, वाक्यांश व्यञ्जना का प्रयोग किया गया हो, जैसे 'आँख के अन्धे नाम नयनसुख', या पद माना जाता है। लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय रहता है। 'यहाँ के बाबा आदम ही निराले हैं', 'हंसे तो हंसिए अडे तो अडिए', उनका अर्थ समझने के लिए किसी अन्य साधन की आवश्यकता आदि। नहीं होती। यह सच है कि कुछ लोकोक्तियों में कभी-कभी क्रियापद दूसरी ओर आप मुहवरा कोश के आमुख में मुहावरा को लुप्त होता है, परन्तु उसको समझने के लिए किसी प्रकार की विशेष भी परिभाषित करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं - कठिनाई नहीं होती। परन्तु मुहावरों में उद्देश्य और विधेय का विधान _ 'मुहावरा' अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बातचीत नहीं होता। इस कारण जब तक उनका प्रयोग वाक्यों में नहीं किया करना या उत्तर देना। कुछ लोग मुहावरे को 'रोजमर्रा', 'बोलचाल', जाता, तब तक उनका सम्यक् अर्थ समझ में नहीं आता। 'तर्जेकलाम', या 'इस्तलाह' कहते हैं, किन्तु इनमें से कोई भी शब्द लोकोक्तियों के रुप सामान्यत: अपरिवर्तनीय होते हैं। यदि 'मुहावरे' का पूर्ण पर्यायवाची नहीं बन सका। संस्कृत वाङ्गय में उनमें शब्दान्तर कर दिया जाए, तो उनकी प्रकृति विकृत हो जाएगी,और 'मुहावरा' का समानार्थक कोई शब्द नहीं पाया जाता। कुछ लोग श्रोता अथवा पाठक उनके अर्थ को नहीं समझ पायेंगे। उदाहरणार्थ, इसके लिए 'प्रयुक्ता', 'वाग्रीति', 'वाग्धारा' अथवा 'भाषा सम्प्रदाय' "यह मुँह और मसूर की दाल' लोकोक्ति है। इसके स्थान पर यदि का प्रयोग करते हैं। वी.एस. आप्टेने अपने 'इंग्लिश-संस्कृत कोश' हम कहे 'यह मुख और चने की दाल', तो लोकोक्ति का रुप विकृत में मुहावरे के पर्यायवाची शब्दो में 'वाक्-पद्धति', 'वाक्-व्यवहार' हो जाएगा और श्रोता हमारा आशय न समझ सकेगा या हमारी हंसी और 'विशिष्ट स्वरुप' को लिखा है। पराडकरजीने 'वाक्-सम्प्रदाय' उडाएगा। इसी प्रकार हम 'राम नाम में आलसी, भोजन में होशियार' को महावरे का पर्यायवाची माना है। काका साहेब कालेलकरने 'वाक्- का प्रयोग इस प्रकार नहीं कर सकते हि वहाँ अनेक लोग ऐसे आए प्रचार' को 'मुहावरे' के लेि 'रूढि' शब्द का सुझाव दिया है। यूनानी थे जो 'भगवान के नाम में आलसी परन्तु खाने में चतुर' थे। इसके भाषा में 'मुहावरे' को 'ईडियोमा', फ्रेंच में 'इडियाटिस्मी' और अंग्रेजी विपरीत व्याकरण की दृष्टि से मुहावरों के रुप में परिवर्तन होता रहता में 'इडिअम' कहते हैं। __विभिन्न विद्वानोंने विभिन्न प्रकार से 'मुहावरे' की परिभाषा 1. लोकोक्ति कोश, आमुख, पृष्ट । की है। मोटेतौर पर हम कह सकते हैं कि जिस सुगठित शब्द 2. मुहावरा कोश, आमुख, पृष्ट 1-2 3. लोकोक्ति कोश, आमुख, पृष्ट 1-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|

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