Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 445
________________ [394]... पञ्चम परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 1. श्वेताम्बर परम्परा और जैनाचार । आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजीमहाराज क्रियोद्धारक श्वेताम्बर जैनाचार्य थे और उनके द्वारा प्रणीत श्री अभिधान राजेन्द्र कोश रचना की पृष्ठभूमि का आधार श्वेताम्बर परम्परा मान्य जैनागम ग्रंथों के शब्द और उनके अर्थ की सुरक्षा थी और आचार्यश्री स्वयं शुद्ध साध्वाचार की जीवन्त मूर्ति थे, अत: आचार्यश्रीने अभिधान राजेन्द्र कोश में श्वेताम्बराम्नाय में मान्य 45 आगमों एवं अन्य आवश्यक ग्रंथों के शब्दों एवं उनसे संबंधित सामग्री का संग्रह करते अनायास ही जैनागमों के शब्दों के माध्यम से श्वेताम्बर परम्परामान्य आचारविज्ञान का अभिधान राजेन्द्र कोश में यत्र-तत्र सर्वत्र वर्णन किया है। और चूंकि इस शोधप्रबन्ध की मुख्य विषयवस्तु भी यही है, अतः इस शोध प्रबन्ध में इसी विषय का पूर्व में यथास्थान विस्तृत वर्णन किया जा चुका है । यहाँ प्रसंगवश श्वेताम्बर परम्परा और जैनाचार का अतिसंक्षिप्त विशिष्ट परिचय दिया जा रहा है। भगवान् महावीर ने केवलज्ञान के पश्चात् धर्मदेशना में सर्वविरति प्रतिलेखन आदि तथा 22 परीषहों के स्वरुप बताकर उन पर विजय और देशविरति - ऐसे दो प्रकार के धर्म की देशना दी जिनमें से प्राप्ति का निर्देश, अतिचार स्थानों के त्याग का उपदेश आदि दर्शाया पहली मुनिधर्म देशना और दूसरी श्रावकधर्म देशना के नाम से प्रसिद्ध गया है। हुई। भगवान् के द्वारा स्थापित चतुविध संघ में भी साधु-साध्वी, मुनि के भेद :और श्रावक-श्राविका द्वारा इन्हीं दो मर्यादाओं का पालन होने से मुनिसंघ एवं चतुर्विध संघ की व्यवस्था हेतु मुनिसंघ में जैनाचार भी 'साध्वाचार' और 'श्रावकाचार' - एसे दो भागों में वर्णित योग्यतानुसार मुनि के तीन भेद दर्शाये गये हैं - 1. आचार्य 2. उपाध्याय 3. साधु (मुनि) निर्ग्रन्थ श्रमणों के आचार का वर्णन करते हुए अभिधान आचार्य :- आचार्य के 36 गुण होते हैं, जो श्वेताम्बराम्नाय में राजेन्द्र कोश में आचार्यश्रीने श्वेताम्बर परम्परानुसार निम्न प्रकार से निम्नानुसार वर्णित हैं - साध्वाचार दर्शाया है - पाँच इन्द्रियों का निरोध, नवविध वाड के साथ ब्रह्मचर्य (1) आचार - ज्ञान, दर्शन, चरित्र रुप मोक्ष मार्ग की आराधना का पालन, चार कषायों का त्याग, पाँच महाव्रतों से युक्त दर्शनाचारादि के लिये किया जानेवाला विविध आचार 'आचार' शब्द से पाँच आचारों का पालन, पाँच समितियों एवं तीन गुप्तियों का पालना कहा गया है। गोचरी (भिक्षाचरी); विनय, विनेय (शिष्य का उपाध्याय : - 11 अंग, 12 उपांग, 1 चरणसित्तरी एवं 1 करणसित्तरी स्वरुप और आचार; भाषा-अभाषा; चरणसित्तरी अर्थात् पांच - इन पच्चीस पदार्थों का ज्ञान एवं पालन तथा पठन-पाठन उपाध्याय महाव्रत, दशविध यतिधर्म, सत्रह प्रकार का संयम, दस प्रकार के पच्चीस गुण हैं।' का वैयावृत्त्य, नव वाड सहित ब्रह्मचर्य का पालन, रत्नत्रय मुनि:- श्वेताम्बर परम्परा में मुनि के 27 गुण माने हैं। ये 27 गुण की साधना, बारह प्रकार का तप और चार कषायों का निग्रह; निम्नानुसार हैंकरणसित्तरी अर्थात् चार पिंडविशुद्धि, पाँच इन्द्रियों का निरोध, साधु के गुण" :पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना, तीन गुप्तियाँ और चार अभिग्रह श्वेताम्बर परम्परा में महाव्रत 5, रात्रिभोजन त्याग 1, पाँचों (क्रिया के सत्तर भेद); संयम यात्रा का पालन, मात्रा (आहार इन्द्रियों का जय 5, भावशुद्धि 1, प्रत्युपेक्षादिकरणशुद्धि 1, क्षमा 1, का प्रमाण), और वृत्ति (संयमचर्या) का समावेश है।। लोभनिग्रह 1, अशुभमन का निरोध 1, अशुभ वचन का निरोध ।, (2) 1. दर्शनाचारः, 2. ज्ञानाचार', 3. चारित्राचार, अशुभकायप्रवृत्ति का निरोध, 1 षट्कायरक्षा 6, संयम योगरक्षा 1, शीतादि 4. तपाचार और 5. वीर्याचार - इस प्रकार से आचार परीषय सहन !, और मरणान्तोपसर्गसहन 1, इस प्रकार साधु के सत्ताईस के पाँच भेद किये गये हैं। गुण हैं। (3) सर्वथा प्राणातिपातविरमण, सर्वथा मृषावादविरमण, सर्वथा साधु के दैनिक कर्तव्य :अदत्तादानविरमण, सर्वथा मैथुनविरमण, सर्वथा परिग्रहविरमण श्वेताम्बर परम्परा में साधु के कर्तव्य दैनिक, पाक्षिक, और सर्वथा रात्रिभोजनविरमण रुप व्रतषट्क, अकल्प्यवर्जन चातुर्मासिक एवं वार्षिक कर्तव्य भेद से निर्धारित हैं, जो निम्नानुसार हैं(अयोग्य पिंड-शय्या-वस्त्र-पात्र-वर्जन), 1. अ.रा.पृ. 2/373 गृहस्थभाजनवर्जन, पर्यक-निषद्या-स्थान और 2. अ.रा.पृ. 2/364,4/2436 शोभावर्जन रुप अठारह प्रकार के आचार का पालन' 3. अ.रा.पृ. 4/1994 4. अ.रा.पृ. 3/1141,1150,1152 - यह सब साध्वाचार में सम्मिलित है। अ.रा.पृ. 4/2200 से 2208 इसके अतिरिक्त साध्वाचार के वर्णन में यथास्थान अनित्यादि 6. अ.रा.पृ. 6/1409 12 भावनाएँ, मैत्र्यादि 4 भावनाएँ, आठ मदों के त्याग का वर्णन, 7. अ.रा.पृ. 6/888 पाँच प्रमादों के त्याग का वर्णन, अष्ट प्रवचन माताओं का पालन 8. पंच प्रतिक्रमण सार्थ एवं दश कल्प, सात चैत्यवंदन, चार बार स्वाध्याय, दोनों समय प्रतिक्रमण, 9. वही 10. साधु प्रतिक्रमण (सार्थ); संबोधसत्तरी प्रकरण 28-29 5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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