Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
View full book text
________________
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
देव से या उनकी सेवा - भक्ति से कैसे होगा ? अर्थात् कभी भी नहीं हो सकता - एसे वचन बोलना, दूसरी 'वचन शुद्धि' कहलाती है।
3. काय शुद्धि - चाहे कोई देव शरीर का छेदन-भेदन करे या कितनी ही पीडा दे, तो भी वे सब सहन करें परन्तु जिनेश्वर परमात्मा के अलावा अन्य देवी-देवता को नमस्कार नहीं करना तीसरी 'काय शुद्धि' कहलाती है।
सम्यक्त्व के दूषण" ( अतिचार ) :
1. शंका - वीतराग या अर्हत् के कथनों पर शंका करना उसकी यथार्थता के प्रति संदेहात्मक दृष्टिकोण रखना ।
2. आकांक्षा स्वधर्म को छोड़कर पर धर्म की इच्छा करना, नैतिक एवं धार्मिक आचरण के फल की कामना करना । नैतिक कर्मों की फलासक्ति भी साधना मार्ग में बाधक तत्व मानी गयी है। 3. विचिकित्सा - नैतिक अथवा धार्मिक आचरण के फल के प्रति संशय करना । अर्थात् सदाचरण का प्रतिफल मिलेगा या नहीं - एसा संशय करना ।
-
4. मिथ्यादृष्टियों की प्रशंसा जिन लोगों का दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है एसे अयथार्थ दृष्टिकोण (मिथ्यात्व) वाले व्यक्तियों अथवा संगठनो की प्रशंसा करना ।
-
5. मिथ्यादृष्टियों का अति परिचय साधनात्मक अथवा नैतिक जीवन के प्रति जिनका दृष्टिकोण अयथार्थ है उनसे घनिष्ट संबंध रखना । चारित्र के निर्माण एवं पतन दोनों पर संगति का प्रभाव पडता है अतः सदाचारी पुरुष का अनैतिक आचरण करनेवाले लोगों से अति परिचय या घनिष्ठ संबंध रखना उचित नहीं माना गया है। सम्यक्त्व के आठ प्रभावक" :1. प्रवचन - प्रभावक (प्रावचनिक) जो द्वादशांगीरुप प्रवचनों या गणिपिटकों के अतिशय ज्ञान द्वारा युगप्रधान शैली में जनता को प्रभावित करता है, जनता में आगम ज्ञान के प्रति प्रकृष्ट भावना पैदा करता है, अपने युगलक्षी प्रवचनों से जनजीवन को धर्माचरण के लिए प्रेरित करता है, वह 'प्रवचन प्रभावक' कहलाता है। 2. धर्मकथा प्रभावक जो विविध युक्ति, दृष्टान्त आदि के द्वारा जनता को सुन्दर सदुपदेश देने की शक्ति रखता हो और जनता को धर्मकथा से प्रभावित करके धर्मबोध देता हो, वह 'धर्मकथा - प्रभावक' कहलाता है।
है
3. वाद प्रभावक (वादी) - जो वादी, प्रतिवादी सभ्य और सभापति रुप चतुरंगिणी सभा में प्रतिपक्ष की युक्तियों का खंडन करके स्वपक्ष की स्थापना करने में सक्षम हो और इस प्रकार अपनी तर्क शक्ति से लोगों को प्रभावित कर धर्म ( शासन) प्रभावना करता हो, उसे 'वाद प्रभावक' कहते हैं। 4. निमित्त प्रभावक जो भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालसम्बन्धी लाभालाभ का विज्ञ हो तथा निमित्त शास्त्रज्ञ हो, और अपने उक्त ज्ञान से जनता को उसके भूत, भविष्य एवं वर्तमान के जीवन से धर्म बोध देकर धर्म साधना की ओर आकर्षित करता हो, वह निमित्त प्रभावक होता है।
-
5. तपस्या- प्रभावक (तपस्वी) - अठ्ठम आदि विविध तपस्या एवं कठीन अभिग्रहपूर्वक तप करके जनता को आत्मशक्ति का परिचय देने तथा तपस्या करके आत्मशुद्धि द्वारा आत्मशक्ति प्रकट करने के लिए प्रभावित करनेवाला तपस्या प्रभावक होता है।
Jain Education International
चतुर्थ परिच्छेद... [163]
6. विद्या - प्रभावक - प्रज्ञप्ति, रोहणी आदि विविध विद्यादेवियों सिद्ध करके तदधिष्ठित विद्याएँ प्राप्त करने वाला विद्या प्रभावक होता है। विद्याप्रभावक अपनी विद्या के द्वारा शासन पर आये हुए विविध उपसर्गों, कष्टों और आपत्तियों को दूर कर शासन प्रभावना करता है। 7. सिद्धि - प्रभावक - वैक्रिय आदि विविध लब्धियों तथा अणिमा आदि विविध सिद्धियाँ, तथा अंजन, पादलेप आदि आकर्षक तंत्र प्रयोग जिसे प्राप्त हो, और संघ की प्रभावना के लिए उनका प्रयोग करता हो, वह सिद्धि प्रभावक कहलाता है।
8. काव्य-प्रभावक (कवि) - गद्य, पद्य आदि में विविध वर्णनात्मक प्रबंध या कविता आदि की रचना करके जनता को उस लेख, निबंध, कथा या कविता आदि के द्वारा धर्माचरण में प्रेरित करके धर्म के प्रति प्रभावित करनेवाला काव्य-प्रभावक कहलाता है।
सम्यक्त्व के 5 भूषण" :
सम्यक्त्व के साथ जिनके जुडने से उसकी शोभा बढे, उसे सम्यक्त्व भूषण कहते हैं। जिन शासन की शोभा बढानेवाले ये भूषण पाँच हैं
-
अन्य ग्रंथो में निम्नांकित आठ अन्य प्रकार बताये गये है 2 1. अतिशेषर्द्धि प्रभावक० ३ 2. धर्मकथा प्रभावक 3. वादी
4. आचार्य 6. नैमितिक
8. राजगणसम्मत प्रभावक
1. जिनोक्त धर्म में स्थिरता:
किसी का मन आपत्ति, शंका आदि कारणों से धर्म से चलायमान हो रहा हो, कोई व्यक्ति धर्म से डिग रहा हो, उसे समझाबुझाकर उपदेश या प्रेरणा देकर धर्म में स्थिर करना अथवा अन्य सम्प्रदाय में ऋद्धि-समृद्धि, आडम्बर या चमत्कार देखकर स्वयं भी जिनशासन के प्रति अस्थिर न होना। यह जिनोक्त धर्म में स्थिरता नामक गुण हैं।
5. क्षपक तपस्वी 7. विद्याप्रभावक
2. धर्म ( शासन) प्रभावना :
धर्मकथा, वादी - जय, उग्रतप, गुरु- प्रवेशोत्सव, स्वामिवात्सल्य, सुपारी-बदाम-नारियल - सिक्के आदि की प्रभावना (बाँटना) के द्वारा स्व- तीर्थ की उन्नति करना, जिसमें जो गुण विशिष्ट हो उससे शासन (धर्म सङ्घ) को दिप्तीमान करना, सर्व प्रकार से शासन - मालिन्य को रोकना और जिसे जिनशासन प्राप्त न हुआ हो, उसे विभिन्न प्रभावनाओं, प्रचार-प्रसार के विभिन्न निमित्तों द्वारा जिन शासन से प्रभावित करना -धर्म प्रभावना या शासन प्रभावना कहलाती है। 66 इस प्रकार प्रभावना करनेवाले प्रभावकों के आठ प्रकार है :
61.
62.
60. 31... 4/2436; 7/35; 3/164, 6/1190, 7/484, 485, 497; सम्यक्त्वसप्ततिका-28-30
63.
64.
65.
66.
अ.रा. पृ. 5/437, 7/484-485; सम्यक्त्वसप्ततिका - 31, 32
समकित सड़सठ बोलनी सज्झाय, पृ. 111 विवेचक
महेता, सूरत (गुजरात)
जंघाचारणादि लब्धि से प्रभावना करना
सम्यक्त्वसप्ततिका -40 से 42; अ.रा. पृ. 7/484, 485 एवं तत्तच्छब्दे
अ.रा. पृ. 4/2410-11
अ. रा.पू. 5/438-39-40
For Private & Personal Use Only
धीरजलाल डी.
www.jainelibrary.org