Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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तृतीय परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की शब्दावली का परिचय
इस शोध प्रबन्ध का तृतीय परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की शब्दावली का परिचय प्रस्तुत करने के लिए निर्धारित किया गया है। अभिधान राजेन्द्र कोश की संरचना देखने से यह ज्ञात हो जाता है कि यह कोई साधारण शब्द कोश नहीं है किन्तु यह विश्वकोश स्वरुप में निबद्ध किया गया है जिसका (मूलविषय) प्राकृत शब्दावली में भी विशेषतः जैनागम साहित्य में प्रयुक्त शब्दों के हार्द को एकत्र प्रस्तुत करना है। इसमें आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने कोशरचना के सिद्धांतो के अनुस्म वर्णानुक्रम से शब्दों का चयन, उनकी व्याकरणिक कोटियाँ, निक्ति, व्युत्पत्ति सप्रमाण देते हुए क्रमप्राप्त अर्थो को क्रमशः देते हुए उनकी व्याख्या की है। कहीं एक-एक शब्द पर निबन्धात्मक विस्तृत व्याख्या भी दी गयी है तो कहीं पर शब्दार्थ को स्पष्ट करते हुए आगे बढने का क्रम दिखाई देता है।
चूँकि इसमें जैनागमों में प्रयुक्त शब्दो की व्याख्या है और जैनागमों में अनेक विषयो पर लिखे गये शास्त्र हैं, इसलिए यह समझना उचित नहीं है कि इसमें मात्र जैन अध्यात्म या जैन दर्शन सम्बन्धित शब्दों का ही समावेश होगा, किन्तु इस कोश में निहित शब्दराशि अनेक विषयों पर प्रकाश डालती है।
आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी पिछली शताब्दी में हुए हैं । तबतक विद्वानों के प्रिय विषय साहित्य, व्याकरण, राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, भूगोल, सामाजिकवृत्त होते थे और इनमें प्रयुक्त शब्दावली संस्कृत से होते हुए प्राकृत भाषा में भी तद्भव के रुप में प्रयुक्त होने लगी, इसलिए प्राचीन विषयों की शब्दावली अभिधानराजेन्द्र कोश में प्राप्त होती है।
शोधप्रबन्ध की रुपरेखा बताते समय यह प्रयास किया गया था कि अपने विषय से स्खलित न होते हुए केवल उन शब्दों पर ध्यान केन्द्रित किया जाय जो आचरपरक दार्शनिक हों। किन्तु ऐसा करने से अभिधानराजेन्द्र कोश के स्वस्म का पूरा परिचय प्राप्त नहीं हो सकता, इसलिए हमने इस शोधप्रन्ध में आचारपरक दार्शनिक शब्दावली से अतिरिक्त शब्दराशि का परिचय देने की आवश्यकता अनुभव की, इसलिए तृतीय अध्याय को शब्दावली का परिचय देने का स्थान बनाया गया जिसमें चार प्रकार की शब्दराशि के लिए चार उपशीर्षक बनाये गये हैं।
साहित्यिक शब्दावली, सांस्कृतिक शब्दावली, राजनैतिक शब्दावली और दार्शनिक शब्दावली -इन चार उपशीर्षकों में केवल उन्हीं शब्दों का समावेश किया गया है जो विशेष महत्त्व के हैं। परिचय में शब्द के साथ ही कोष्टक में उसके लिंग को पुल्लिंग (पु.), स्त्री, और नपुंसक (न.) संकेतो से दर्शाया गया है और कोष्टक के बाहर अभिधानराजेन्द्र कोश में उसके स्थान-भाग और पृष्ठ को दर्शाने में तिर्यग् रेखा से पृथक् किया गया है जैसे भाग 1, पृ. 35 = 1/35) जहाँ तक दार्शनिक शब्दावली का प्रश्न है उसमें आचारपरक दार्शनिक शब्दावली तो इस शोध प्रबन्ध का ही विषय है इसलिए उनको यहाँ लेना तर्कपूर्ण नहीं था, किन्तु आचरण से भिन्न जो तत्त्वमीमांसा, प्रमाणमीमांसा, तर्कविद्या से संबन्धित शब्द हैं उन्हीं का संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया है जो कि आगे के शीर्षको में व्यवस्थित हैं। (यहाँ पर 'नय' पृ. 126 एवं निक्षेप पृ. 135) शब्द का परिचय 'प्रमाण' शब्द के अन्तर्गत दिया गया है)
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