Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
View full book text
________________
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
तृतीय परिच्छेद... [111] और प्रकर्ष प्रयत्न को 'अध्यवसान' कहते हैं। अज्झवसाय - अध्यवसाय (पुं.) 1/232
जैनागमों में सूक्ष्म आत्म परिणामों को 'अध्यवसाय' कहते हैं जिसे नैयायिक-आत्म धर्म, वेदान्ती-बुद्धिधर्म, बौद्ध-इन्द्रियवृत्ति, सांख्यसात्त्विक चित्तवृत्ति और वाचस्पति कोश-उत्साह कहते हैं। अट्ठबुद्धिगुण - अष्टबुद्धिगुण (पुं) 1/247
शुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारणा, ऊहा, अपोह, अर्थविज्ञान और तत्त्वज्ञान - ये आठ बुद्धि के गुण हैं। जो मनुष्य इसे धारण करता है उसका कभी भी अकल्याण नहीं होता। अणाइसिद्धांत - अनादि सिद्धांत (पुं.) 1/306
अनादि काल से सिद्ध वाच्य-वाचक संबन्धरुप अन्त (वचन, वाक्य, सिद्धांत) को 'अनादि सिद्धांत' कहते हैं । अणागत कालग्गहण - अनागत कालग्रहण - 1/306
भविष्यकाल (निमित्तज्ञानादि से संभावित अनुमानित भविष्यवाणी) संबन्धी ग्राह्य वस्तु के भेद रुप काल ग्रहण को 'अणागत कालग्गहण' कहते हैं। यह अनुमान प्रमाण का एक भेद है। जैसे-मेघगर्जना, प्रदक्षिणावर्त वायु, नक्षत्र-योग आदि से सुवृष्टि की भविष्यवाणी करना। अणिक्कावाई (ण)-अनेकवादिन् (पुं.) 1/331
जो लोग सभी पदार्थों में सर्वथा नितान्त भेद मानते हैं उन्हें अनेकवादी कहते हैं। उनका तर्क यह है कि यदि पदार्थो को कथञ्चित् अभिन्न माना जाये तो जीव, अजीव, बद्ध, मुक्त, सुखी, दु:खी आदि के एक होने से दीक्षा आदि प्रयत्न व्यर्थ हो जायेंगे। अणुओग - अणु (नु) योग - (पुं) 1/340
'महान् अर्थ का सूत्र के साथ योग होना' - 'अनुयोग' कहलाता हैं। अनुकूल योग या व्याख्यान में अर्थप्ररुपणा संबन्धी विधिप्रतिषेध को भी 'अनुयोग' कहते हैं।
यहाँ पर आचार्यश्रीने 23 द्वारों में अनुयोग के द्वारों के नाम, निक्षेपद्वार, नामस्थापनानुयोग, द्रव्यानुयोग, उसके भेद और उनका स्वरुप, क्षेत्रानुयोग, कालानुयोग, वचनानुयोग, भावानुयोग और उसके प्रकार, अनुयोग विषयक द्रव्यों का परस्पर समावेश या भजना (विकल्प), एकार्थिकों की वक्तव्यता, अनुयोग शब्दार्थनिर्वचन, अनुयोगविधि, प्रवृत्तिद्वार, गुरु-शिष्य की चतुर्भङ्गी, अनुयोगाधिकारी, अनुयोग का विषय (किसको कौन से शास्त्र का अनुयोग करना), श्रुतज्ञानानुयोग, अनुयोगलक्षण, योग्यताद्वार, कथाधिकार, चरणकरणादि अनुयोग के चार प्रकार का निरुपण और आचार्य आर्यरक्षितसूरि के द्वारा अनुयोगों का पृथक्करण इत्यादि बातों का यथासंक्षेप-विस्तारपूर्वक वर्णन किया हैं। अणुभव - अनुभव (पुं.) 1/392
स्मृति से भिन्न ज्ञान 'अनुभव' हैं। विषयानुरुप होने की बुद्धि की वृत्ति 'अनुभव' कहलाती हैं। अनुभव को नैयायिक-प्रत्यक्षादि चारों प्रमाणों से, वेदान्ती और मीमांसक अर्थापत्ति और उपलब्धि - इन दो भेदों से, वैशेषिक और बौद्ध प्रत्यक्ष और अनुमान से, सांख्य प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द - इन तीन प्रमाणों से, और चार्वाक मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण से मानते हैं। अणुमान - अनुमान (पुं.) 1/101 थी 409
लिङ्ग-लिङ्गी संबन्ध के ग्रहण से स्मरणानन्तर देश-काल और स्वभाव से विशेष अर्थ जिस ज्ञान विशेष के द्वारा ज्ञात किया जाता है, उसे 'अनुमान' कहते हैं। लिङ्ग और लिङ्गी में अविनाभाव संबन्ध होने से और साध्य निश्चायक होने से अनुमान भ्रान्तिरहित होता हैं। यह प्रमाण का द्वितीय भेद हैं।
यहाँ पर आचार्यश्रीने स्याद्वादमञ्जरी के अनुसार अनुमान प्रमाण को नहीं माननेवाले चार्वाकों का युक्तिपूर्वक खंडन किया है। साथ ही रत्नाकरावतारिकानुसार स्वार्थ और परार्थानुमान का एवं अनुमान के पूर्ववत्, शेषवत् और अदृष्ट साधर्म्यवत् - इन तीनों भेदों की उनके भेदप्रभेद सह विस्तृत चर्चा की है और सामान्य, विशेष रुप भेदपूर्वक दृष्ट अनुमान की भी चर्चा की हैं। इसके साथ ही अनुयोगद्वार सूत्रानुसार अनुमान के अतीत-प्रत्युत्पन्न और अनागत - इन तीनों कालाश्रित भेदों का विस्तृत वर्णन करने के बाद प्रमाण के आधार-रुप वाक्यों के प्रतिज्ञादि दश अवयवों का दशवैकालिक नियुक्ति के आधार पर एवं पक्षादि पाँच अवयवों का रत्नाकरावतारिका के आधार पर वर्णन किया
अणेगंतवाय - अनेकान्तवाद (पुं) 1/423
____ इस विश्व में अनन्त वस्तुएँ हैं। प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक हैं। अतः अनेकान्तवाद उन अनन्त धर्मों को भिन्न भिन्न अपेक्षाओं से देखकर पदार्थ का सत्य स्वरुप समझाने का उपाय करता हैं। अभिधान राजेन्द्र कोश में 'अनेकान्त' शब्द की व्याख्या करते हुए कहा हैं
"अम्यते गम्यते निश्चीयते इति अन्तः धर्मः ।
('अणेगन्तप्पग' शब्दके अन्तर्गत) न एको ऽनेकः । अनेकाश्चऽसावन्तश्चानेकान्तः । स आत्मस्वभावो यस्य वस्तु जातस्य तदनेकान्तात्मकम् ।।
1.
अ.रा.भा. 1/423
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org