Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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[158]... चतुर्थ परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
2. मुक्ति का मार्ग : सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र
अभिधान राजेन्द्र कोश में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने जैनागमानुसार जैन धर्म का उद्देश्य, लक्ष्य तथा फल मोक्ष बताया गया है, अतः भव्यात्मा के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति के लिए तदनुरुप मार्ग पर चलना नितान्त आवश्यक है। इसलिए आचार्यश्रीने अभिधान राजेन्द्र कोश में 'मोक्ष' की प्राप्ति के लिए मुक्ति का मार्ग या 'मोक्षमार्ग' का भी वर्णन किया है। मोक्षमार्ग शब्द की व्युत्पत्ति:
मोक्षमार्ग के दो भेद : निश्चय और व्यवहार :___ 'मोक्षमार्ग' शब्द 'मोक्ष' और 'मार्ग' इन दो पदों से बना (1) व्यवहार मोक्षमार्गःहै। 'मोक्ष' का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। 'मार्ग' की व्याख्या
षद्रव्य, नवतत्त्व, पञ्चस्तिकाय का श्रद्धान सम्यग्दर्शन, उन्हीं करते हुए आचार्यश्रीने अभिधान राजेन्द्र कोश में कहा है कि "मार्ग
पदार्थों का अभिगम या अंग, पूर्व संबंधी आगम ज्ञान सम्याज्ञान और शब्द मृजु शुद्धौ धातु से घञ् प्रत्यय होने पर निष्पन्न होता है । जिससे
तप में चेष्टा या रागादि का परिहार या अहिंसादि व्रत-शील का पालन
सम्यक् चारित्र है। यही रत्नत्रय व्यवहार से 'मोक्षमार्ग' है।14 अतिचारादि दोषों की पाप-प्रक्षालन के द्वारा शुद्धि होती है, उसे 'मार्ग'
(2) निश्चय मोक्षमार्ग:कहते हैं । अथवा जो शिव अर्थात् मोक्ष का अन्वेषण करता है, उसे ।
जो आत्मा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक् चारित्र के द्वारा मार्ग कहते हैं। सर्वज्ञोक्त, संविग्न, अशठ, गीतार्थों के द्वारा आचरित,
समाहित होता हुआ करने-छोडने के विकल्पों से अतीत हो जाता आगम सम्मत, जिसका सज्जनों के द्वारा, मार्गानुसारियों के द्वारा और
है, वह आत्मा निश्चय नय से 'मोक्षमार्ग' कहा गया है।5। अथवा महाजनों के द्वारा अनुसरण किया गया हो, शिष्टाचार से अविरुद्ध प्रवृत्ति
विशुद्ध ज्ञान दर्शन लक्षणवाले जीव का अपने स्वभाव में निश्चल 'मार्ग' कहलाती है।
अवस्थान करना ही 'मोक्षमार्ग' है।6।। मोक्ष मार्ग के प्रकार:
उत्तराध्ययन सूत्र के अठाइसवें अध्ययन में कहा है कि "दर्शन द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका में तीन प्रकार के मार्ग बताये गये हैं के बिना ज्ञान नहीं होता और जिसमें ज्ञान नहीं है उसका आचरण -1. यति धर्म (साधु धर्म) 2. श्रावकधर्म और 3. संविज्ञापाक्षिक' । सम्यक् नहीं होता। सम्यक् आचरण के अभाव में आसक्ति से मुक्त अभिधान राजेन्द्र कोश में दो प्रकार से भी मार्ग बताया गया है- नहीं हुआ जाता है और जो आसक्ति से मुक्त नहीं उसका निर्वाण 1. दव्य स्तव - द्रव्य (धन) व्ययपूर्वक जिनभवन निर्माण, या मोक्ष नहीं होता"17 | अत: मोक्षप्राप्ति हेतु मोक्षमार्ग के साधन जिनबिम्बपूजादि करणरुप।
के रुप में इन तीनों की अनिवार्यता होने से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र
तीनों को समवेत रुप में मोक्ष का साधन माना गया है। | अतः 2. भावस्तव - जिस स्तव में आत्मा के शुद्ध परिणाम होते हैं, उन्हें
मोक्ष का प्रधान कारण होने से अब यहाँ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और भावस्तव कहते हैं । अन्तरात्मा की प्रीतिपूर्वक तथाविध कर्मों के क्षय/
सम्यक् चारित्र का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। उपशम/क्षयोपशम की उपेक्षा सर्वविरति, देशविरति को अङ्गीकार करने का भाव 'भावस्तव' है।
बाह्याभ्यन्तर बारह प्रकार के तप, सत्रह प्रकार का संयम और हिंसादि पांचों आस्रवों के त्याग रुप तपसंयमयुक्त; और अठारह 1. अ.रा., पृ. 6/37 हजार शोलाङ्ग रथ के धारक सुसाधु भगवंतो के द्वारा जीवाजीवादि
2. अ.रा., पृ. 6/37; विशेषावश्यक भाष्य-1381
3. अ.रा., पृ. 6/37-38; द्वात्रिशिद् द्वात्रिंशिका-3/1-2-3 तत्त्वों के लक्षण सहित प्रतिपादन करनेवाले समस्त (त्रिलोकवर्ती)
अ.रा., पृ. 6/40; द्वात्रिशिद् द्वात्रिशिका-3/29 जगत के उन समस्त जीवों के हित और रक्षण के लिए सदुपदेशदानपूर्वक
5. अ.रा., पृ. 6/40; दर्शनशुद्धि प्रकरण-4/8 जो 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररुप' मार्ग का उपदेश करते हैं, वही प्रशस्त अ.रा., पृ. 6/41
7. भाव मार्ग या सम्यग्मार्गरुप मोक्षमार्ग है। आगे आचार्यश्रीने विभिन्न
अ.रा., पृ. 6/447,448
8. उत्तराध्ययन, अध्ययन 32 रुप से 'मोक्षमार्ग'शब्द के निम्न अर्थ बताये है
9. प्रश्नव्याकरण 5, संवद्धार __ "उत्तराध्ययन सूत्र में जिससे आठों कर्मो का नाश हो उसे , 10. सूत्रकृतांग 1/13 प्रश्नव्याव्याकरण में मोक्ष के मार्ग को', सूत्रकृतांग में सम्यग्दर्शन ज्ञान
11. गच्छाचार पयन्ना, 2 अधिकार
12. जीतकल्प, । प्रतिच्छेद चारित्र को, गच्छाचारपयन्ना में निर्वाण पथ को", जीतकल्प में जिनपूजा
13. अ.रा., पृ. 6/448 को, नंदीसूत्र में सकल कर्मजाल के हेतु रुप मिथ्यात्व, अज्ञान, 14. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-3/335; पञ्चस्तिकाय 160; समयसार 155%3B जीवहिंसादि को अर्थात् सकल कर्मो के नाश के लिए सम्यग्दर्शनादि
तत्त्वार्थसार 9/4; परमात्म प्रकाश- 2/31
15. पञ्चास्तिकाय मूल 161; तत्त्वार्थसार 9/3; जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश 3/335 के अभ्यास को मोक्षमार्ग कहा है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार
16. पञ्चास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति 158/229/12; जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश 3/335 सम्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप को समुच्चित रुप से यहाँ मोक्षमार्ग कहा
17. उत्तराध्ययन 28/30 गया है।
18. तत्त्वार्थसूत्र 11 पर तत्त्वार्थ भाष्य
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