Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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[100]... तृतीय परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन देवताष्ठित होने से जहाँ स्वर्गादि तीनों लोक की संभव वस्तुओं की प्राप्ति करानेवाली दुकान या विभिन्न धातु से निष्पन्न सर्व वस्तु जहाँ प्राप्त हो ऐसी दुकान को 'कुत्रिकापण' कहते हैं।
यहाँ कुत्रिकापण का स्वरुप, वहाँ की वस्तुओं का मूल्य एवं तत्संबंधी कथाएँ वर्णित हैं। कुलाचार - कुलाचार (पुं.) 3/600
कुल के सिद्धांत, कुल संबन्धी आचार 'कुलाचार' कहलाता हैं। जैसे शक कुलों में पितृशुद्धि, आहीरों में मथनी की शुद्धि इत्यादि । खेत्त - क्षेत्र (न.) 3/756
जीव एवं अजीव के निवास योग्य स्थान, खेत, गाँव आदि योग्य स्थान, जनपद, गाँव, नगर आदि के लिए 'क्षेत्र, शब्द का प्रयोग किया जाता है। क्षेत्र शब्द के अन्यत्र धर्मास्तिकाय आदि की वृत्ति जहाँ होती है उसे, साधु के निवास योग्य स्थान, भरत-ऐरावतादि क्षेत्र, जिन चैत्यादि सप्त क्षेत्र, देह, अन्तःकरण, स्त्री-परिवार, लोकांत में सिद्ध स्थान, कलत्र आदि अर्थ भी किये गये हैं।
यहाँ साधु के लिए चातुर्मास योग्य स्थान (क्षेत्र) के गुण-दोष का विस्तृत वर्णन किया गया हैं। खेत्तकप्प - क्षेत्रकल्प (पुं.) 3/767
देश विशेष के आचार को, देश (क्षेत्र) विशेष के अनुसार कल्प्याकल्प्य (वस्तु, खाद्य पदार्थादि के विषय में) 'क्षेत्रकल्प' कहलाता
यहाँ साधु योग्य क्षेत्र की विशेषता वर्णित हैं। गम्म - धम्म - गम्य धर्म (पुं.) 3/842; ग्राम्य धर्म (पं.)
विवाह के पक्ष में वर के द्वारा पाणिग्रहण के योग्यायोग्य कन्या संबन्धी नियम 'गम्य धर्म' कहलाता है। जैसे - दक्षिण देश में मामा की लडकी के साथ शादी कर सकते हैं लेकिन उत्तर देश में उसका निषेध हैं। किसानादि के आचार धर्म, मैथुन, (व्यवाय) को 'ग्राम्य धर्म' कहते हैं। गिह - गृह (न.) 3/895; गेह - गेह 3/948
महल, आवास, बन्धा हुआ मकान, घर, गृहस्थत्व को 'गिह' कहते हैं और वास्तुविद्याविधान से युक्त मकान को 'गेह' कहते हैं। गोट्ठिधम्म - गोष्ठी धर्म (पुं.) 3/950
वसन्तादि उत्सवों में इस प्रकार करना-इत्यादि समवयस्क मित्रों की आपसी व्यवस्था का पालन 'गोष्ठी धर्म' कहलाता हैं। गोट्टी - गोष्ठी (स्त्री.) 3/953
महत्तर (मुखिया) आदि पाँच पुरुषों से युक्त, जनपद विशेष, परस्पर बातचीत और पोष्यवर्ग को 'गोष्ठी' कहते हैं। गोत्त - गोत्र (न.) 3/954
उच्च-नीच कुलोत्पत्ति लक्षण पर्याय विशेष, यथार्थ कुल और उस प्रकार के एक पुरुष के द्वारा उत्पन्न वंश को 'गोत्र' कहते हैं। गोत्र कर्म के लिये भी 'गोत्र' शब्द का प्रयोग होता हैं। घंघसाला - घशाला (स्त्री.) 3/1037
यात्री के ठहरने हेतु हवा-ताप आदि रहित अतिरिक्त स्थान (धर्मशाला) को 'घंघसाला' कहते हैं। घरग - गृहक (न.) 3/1042
सुखेच्छु लोगों के मैथुन सेवा के लिए वनखण्ड के मध्य में बने 'वास भवन/मोहन घरगर्भ गृह को 'घरग' कहते हैं।
यहाँ पर आलीगृहक, कदली गृहक, लता गृहक, माली गृहक (वनस्पति के घर), अवस्थान गृहक, प्रेक्षणक गृहक, मज्जन गृहक, प्रसाधन गृहक, शाला गृहक, कुसुम गृहक, गन्धर्व गृहक, आदर्श गृहक इत्यादि गृहकों का वर्णन किया गया हैं। घोस - घोष (पुं.) 3/1046
यहाँ आभीरपल्ली, गोकुल, गोष्ठ, गोपाल, शब्द, निनाद, अनुवाद, उदात्तादि स्वरविशेष, कण्ठस्थानीय वर्ण, ध्वनि, घण्टारव, मेघगर्जन, कांस्यपात्र, मशक, घोषलता, घोषवान्, कुमारों के इन्द्र के लिए 'घोस' शब्द प्रयुक्त हैं। घोसण - घोषण (न.) 3/1046
ध्वनि और उद्घोषणापूर्वक के व्यापार के लिए 'घोषण' शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। चंददरिसणिया - चन्द्रदर्शनिका (स्त्री.) 3/1071
नवजात बालक का जन्म के दो दिन बाद चन्द्रोदय के समय चन्द्रदर्शन महोत्सव 'चन्द्रदर्शनिका' कहलाता हैं। चंदसूरदंसावणिया - चंदसूरपासणिया - चन्द्रसूर्यदर्शनिका (स्त्री.) 3/1096
नवजात बालक के जन्म के तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य दर्शन के उत्सव को 'चन्द्रसूर्यदर्शनिका' कहते हैं। चक्कसाला - चक्रशाळा (स्त्री.) 3/1104
तेल की घाणी (जहाँ तेल निकाला जाता है) को 'चक्कसाला' कहते हैं। चक्कियसाला - चाक्रिकशाला (स्त्री.) 3/1104
तेल बेचने के स्थान को 'चाक्रिकशाला' कहते हैं।
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