Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
View full book text
________________
[60]... द्वितीय परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
આ કોશ સાત ભાગોમાં વિભક્ત છે એનું દળ એટલું તો ભારે છે કે એક વ્યક્તિ તેનું વજન ઉંચકી પણ ન શકે બીજું, એમાં માત્રા ક્રમથી અકારાદિ શબ્દોનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે પ્રસ્તુત કોશનું નામ પણ ‘યથાનામ તથાગુણ’ અનુસાર અભિધાન - નામોનો રાજા અને તેમનો પણ ઈન્દ્ર - સર્વોપરિ, આ નામ વાસ્તવમાં સાર્થક લાગે છે.
આ કોશના નિર્માતા વીસમી સદીના મહાન પ્રભાવક, સર્વતન્ત્ર-સકલાગમ પારદર્શી, વિશ્વવન્ધ જૈનાચાર્ય શ્રીમદ્વિજય રાજન્દ્ર સૂરીશ્વરજી મહારાજ છે. તેમણે તેમની અદ્ભૂત રચનાથી વિશ્વના સર્વ વિદ્વાનોને માત્ર મુગ્ધ જ નથી કર્યા, પરન્તુ ભારે આશ્ચર્યમાં નાખી દીધા છે રચયિતાની અલૌકિક શક્તિ અને વિદ્વત્તાની યશોગાથા સાહિત્યક્ષેત્રે વિશ્વમાં સદાને માટે અમર બનીને નવસર્જનના માર્ગમાં અક્ષુણ્ણ શક્તિ અને સ્ફૂર્તિ પ્રદાન કરતી રહેશે.
-મુનિ કલ્યાણવિજય ( राधेन्द्रोशमां : डिथित वस्तव्यमांथी उद्धरित ) अभिधान राजेन्द्र कोश में जैसी गहराई है वैसी व्यापकता भी है। यह कोश मानवीय प्रतिभा का चमत्कार है। यह कोश समूची भारतीय संस्कृति का दर्शन है।
1. सम्यक् चारित्र
2. सम्यक् चारित्र
3. सम्यक् चारित्र
4. सम्यक् चारित्र
5. सम्यक् चारित्र
6. सम्यक् चारित्र
7. सम्यक् चारित्र (दीक्षा)
8. सम्यक् चारित्र
9. सम्यक् चारित्र
10. सम्यक् चारित्र
11. सम्यक्च
12. सम्यक्चारित्र
Jain Education International
- स्वामी आत्मानंदजी
स्वामी रामकृष्ण विवेकानंद आश्रम, रायपुर ।
(सम्यक् चारित्र
आत्मा का ‘अत्युत्तम गुण' है ।
आत्मा के कर्मशत्रुओं का सर्वथा विनाश करने वाला 'महान् शस्त्र' है। आत्मा की कर्म-निर्जरा का 'अनुपम साधन' है।
आत्मा को सम्पूर्णतया अहिंसक जीवन जीने का 'असाधारण स्थान' है। सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान द्वारा संसार-सागर तिराकर मुक्ति किनारे पहुँचानेवाला 'अलौकिक (स्टीमर) जहाज' है ।
भव्यात्मा को मुक्तिपुरी में शीघ्र ले जानेवाला 'अजोड विशेष दिव्य विमान' है । मुक्तिवधू की 'महान् दूती' है ।
आत्मा को पंच महाव्रत और छठे रात्रिभोजनव्रत का आजीवन पालन करने की 'भीष्म प्रतिज्ञा' है ।
आत्मा को अष्ट कर्मरुप बन्धन की बेडी से मुक्त कराकर स्वतन्त्रता दिलानेवाला, अपना अनंतज्ञानादि अखूट खजाना दिखानेवाला तथा मोक्ष का शाश्वत सुख प्राप्त करानेवाला 'अद्वितीय महामन्त्र' है ।
जगत् में जैनधर्म का - जैनशासन का 'अद्भूत आधार स्तम्भ' है। सर्व सुख का 'मजबूत मूल' है और सिद्धि का 'सच्चा सोपान' है । पंच महाव्रतों का, दस प्रकार के यतिधर्म का, सत्तर प्रकार के संयम का, दस प्रकार की वैयावच्च का, नव प्रकार के ब्रह्मचर्य की गुप्ति का, तीन रत्नत्रयीका, बारह प्रकार के तप का तथा चार कषायनिग्रह का एवं चरणसित्तरीकरणसित्तरी इत्यादि गुणरत्नों का 'अमूल्य खजाना - भण्डार' हैं।
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org