Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Author(s): Darshitkalashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन यहाँ जैनों का एक भी घर न होने पर भी जैनेतर ग्रामीण जनता भद्र परिणामी एवं श्रद्धावान् हैं। वे मंदिर में प्रतिदिन दर्शन हेतु आते हैं एवं विवाह, त्यौहार आदि विशेष प्रसंगों पर बहुत भक्ि करते हैं। इतना ही नहीं शादी के बाद नये दंपति सर्वप्रथम श्री महावीर स्वामी के दर्शन करने अवश्य आते हैं- ऐसी परंपरा हैं । 4. तालनपुर तीर्थ :
यह तीर्थ कुक्षी (म.प्र.) से 4 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं । जैनागम-शास्त्रों में तुंगियापुर, तुंगियापत्तन और तारन / तालनपुर के नाम से विश्रुत इस गाँव में विक्रम की 14 वीं, 15वीं शती में 21 जिनालय एवं 5000 जैनों के घर थे। 120
वि.सं. 1916 में यहाँ एक भिलाले के खेत में से भूखनन से श्री ऋषभदेवादि 25/45 प्रतिमाएँ मिलीं। इस पर किसी प्रकार का लेख नहीं है परंतु बनावट से ऐक हजार साल से भी अधिक प्राचीन होना ज्ञात होता हैं। इसके बाद वि.सं. 1928 में मार्गशीर्ष सुदि 14 के दिन बरगद बावडी पर सोये एक मुसाफिर स्वर्णकार के स्वप्नानुसार दूसरे दिन यानी वि.सं 1928 में मार्गशीर्ष सुदि पूर्णिमा के दिन सवा प्रहर दिन चढने पर श्री गोडी पार्श्वनाथजी की प्रतिमा उसी बरगद बावडी के पानी में से तैरती हुई पेटी में से चमत्कारिक रुप से ताजी पूजन की हुई स्थिति में निकली थी। 121 यह प्रतिमा वि.सं. 1022 फाल्गुन शुक्ल पंचमी गुरुवार को श्री बप्पभट्टीसूरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठित हैं 1122
आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीने श्रीसंघ कुक्षी को उपदेश देकर दो नूतन जिनालय बनवाकर एक में उक्त श्री आदिनाथादि की 25 प्रतिमाएँ एवं एक में श्री गोडी पार्श्वनाथ की प्रतिमा वि.सं. 1950 माघ वदि द्वितीया के दिन प्रतिष्ठित की थीं। 123 5. मोहनखडा तीर्थ 1 24 :
यह तीर्थ मध्यप्रदेश के धार जिले में राजगढ से पश्चिम दिशा में 3 कि.मी की दूरी पर हैं। वि.सं. 1938 के शीतकाल में आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी राजगढ पधारे तब आपके पास शा लुणाजी दल्लाजी प्राग्वाटने अपनी जीवन शुद्धि की भावना से जीवन के कार्यो की आलोचना की । आलोचना में आचार्यश्री ने जिन मंदिर निर्माण हेतु प्रेरणा दी। तदनुसार वीरामखेडा नामक कस्बे में टेकरी पर स्वस्तिक, पगलिये (कुमकुम) आदि दिव्यसंकेतयुक्त भूमि पर शा. लुणाजी ने शुभमुहूर्त में विधिविधानपूर्वक सौधशिखरी जिनमंदिर बनवाकर आचार्य श्री के करकमलों से स्वयं कृत महोत्सव के साथ वि.सं. 1940 के मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी गुरुवार के दिन श्री ऋषभदेव स्वामी की 31" की श्वेतवर्णी संगमरमर प्रतिमा एवं अन्य प्रतिमाएँ अंजनशलाका और प्रतिष्ठा करवाकर प्रतिष्ठित की थीं। इसके बाद लुणाजी स्वयं इस तीर्थ की व्यवस्था करते रहे। अपने अंत समय में उन्होंने यह तीर्थ राजगढ त्रिस्तुतिक श्रीसंघ को सौंप दिया । वि.सं. 2013 में आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी
श्री संघ को इस तीर्थ के विकास एवं उन्नति हेतु प्रेरित किया । अत: वि.सं. 2014 में स्वगच्छीय श्री संघ की बैठक में राजगढ त्रिस्तुतिक श्री संघने इस तीर्थ की समस्त जिम्मेदारी अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक श्री संघ को सुपुर्द की। तब से अब तक हुए इस तीर्थ के सर्वतोमुखी विकास का श्रेय उनको एवं उनके शिष्य आचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरिजी को हैं ।
वर्तमान में यहाँ संगमरमर का त्रिशिरवरी मुख्य जिनालय,
प्रथम परिच्छेद ... [23]
श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी, श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी एवं श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी - इन तीनों गुरुवरों के अग्नि-संस्कार स्थल पर तीन गुरुमंदिर, उपाश्रय, विशाल धर्मशालाएँ, भोजनशाला, गौशाला, गुरुकुल आदि हैं।
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मोहनखेडा तीर्थ आज देशी-विदेशी असंख्य गुरुभक्तों की परम श्रद्धा का केन्द्र हैं। वहाँ आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के गुरुमंदिर में उनकी उपस्थिति का प्रत्यक्ष अनुभव होता है, प्रत्येक पुण्यात्मा की सात्त्विक मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, आत्मा को परम शांति एवं सहज आनंद की अनुभूति होती हैं।
उसके समीप में राष्ट्रसंत वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजीने स्वस्तिकाकार में श्री राज-राजेन्द्र जैन तीर्थ दर्शन ( जयन्त म्युझियम) का निर्माण कराया है जो दर्शनीय है -
आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि : तीर्थरक्षक:
मध्यप्रदेश के निमाड क्षेत्र में 'बावनगजा' दिगम्बर जैन तीर्थ हैं। वहाँ चुलगिरि तीर्थ पर श्री जिनेश्वर परमात्मा की चरणपादुका विराजमान हैं । किन्तु ख्रिस्त सन् 1860 में वैष्णव समाज और दिगम्बर समाज ने इस पर अपना अधिकार बताते हुए बडवानी (जिला धार ) हाईकोर्ट में मुकदमा पेश किया था। कई वर्षो तक इस विवाद का सत्य न्याय नहीं हो सकने पर बडवानी रियासत के राजा ने झाबुआ के दीवान नारायणसिंह की मध्यस्थता में समस्त मुकदमा के अभिलेख प्रस्तुत करते हुए निर्णय हेतु आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी से विनती की। आपने समस्त कागज देखकर अपने सप्रमाण अकाट्य तर्कों से सन् 1984 में 'चूलगिरि जैन श्वेताम्बर तीर्थ है' यह सिद्ध किया 125
120. नेमाड प्रवास गीतिका मुनि जयानंदविजय, वि.सं. 1427, उद्धरित - श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ पृ. 85
तालनपुर तीर्थ का इतिहास ले. मनोहरलालजी पुराणिक
स्वस्ति श्रीपार्श्वजिनप्रसादात्संवत् 1022 वर्ष मासे फाल्गुने सुदि पक्षे 5 गुरुवासरे श्रीमान् श्रेष्ठी श्रीसुखराजराज्ये प्रतिष्ठितं श्री बप्पभट्टी (ट्ट) सूरिभि: तुंगियापत्तने । श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रतिमा पर उल्लिखित लेख, - श्रीगोडी पार्श्वनाथ जैन मंदिर, तालनपुर
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121. 122.
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123. श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ, पृ. 85
124.
मोहनखेड़ा तीर्थ का इतिहास से संकलित (क) श्री राजेन्द्रगुण मञ्जरी पृ. 72
(ख) बावनगजानो फैसलो हस्तलिखित रजिस्टर श्री राजेन्द्र बृहद् जैन ज्ञान भंडार आहोर, कुक्षी
(ग) बावनगजानो दियो फेंसलो, वैष्णव हक उटायो रे । राज्यसभा में विजय प्राप्त कर, जैन तीर्थ रोपायो रे ॥4॥ श्री गुरु गुण जीवन-निर्झरी रासपूर्ति पृ. 39
125.
अप्पा खलु सययं रक्खिअव्वो, सव्विदिहिं सुसमाहिहिं । अरक्खिओ जाइप उवेइ, सुरक्खि सव्वदुहाण मुच्चइ ॥
अ. रा. पृ. 2/231
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