Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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इतिहास - प्रेमी गुरुवर्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज
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गये, जहां उनका श्वसुरालय था । वे थोड़े वर्ष भी वहां जीवित नहीं रहे और वे भी स्वर्ग सिधार गये । इस समय आपकी आयु कोई १२-१३ वर्ष की रही होगी ।
खण्ड
आपका जन्म नाम रामरत्न था । पिता के देहत्याग के पश्चात् आपका भरणपोषण आपके मामा ठाकुरदास करने लगे । मामा यद्यपि निस्संतान थे; परन्तु स्वभाव से चिड़चिड़े थे और आप चंचल और कुछ निरंकुश प्रकृति के थे । मामा का प्रेम आप पर अधिक समय तक ठहरा न रह सका । मामा आपको प्रायः छोटी २ बातों पर फटकार दिया करते थे और फटकार में कभी २ ऐसे शब्दों का प्रयोग भी कर बैठते थे जो प्राणवान् एवं बुद्धिमान् बालक को कभी सहन भी नहीं हो सकते थे । उज्जैन में होनेवाला सिंहस्थ मेला संनिकट आ रहा था। ठीक इसके कुछ ही दिनों के पूर्व एक रात्रि को नाटक देखकर आने पर आपको मामा ने अत्यन्त बुरा-भला कहा और कहा, “ यही स्वभाव रहा तो भिक्षा मांगोगो । जो मैं नहीं होता तो रखड़-रखड़ कर मरना पड़ता !" ये शब्द आपके हृदय पर गाण्डीव के तीरों से भी तीक्ष्ण लगे । आपने तुरंत मामा के घर का त्याग कर दिया और कुछ दिन आप अपने एक मित्र की दुकान पर रह कर एक दिन सिंहस्थ मेले को चल दिये और जब सिंहस्थ मेला समाप्त हो गया तो आप भी उज्जैन से लौट कर मार्ग में संध्या-समय महीदपुर में रुके ।
हम निर्बलहृदयी, आश्रय में जीनेवाले, परमुखापेक्षी भले यह कहें कि सुशि क्षित माता-पिता का प्यारा पुत्र रामरत्न आज अनाथ होकर, कुलवान् से भिक्षुक हो कर गौरवान्वित से हीन होकर, और परिवारवाले से दीन होकर, असहाय, दुःखी बन कर महीदपुर की संकुचित टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में निरुद्देशित ठोकरें खा रहा है ।
सूरिजी से भेंट - 'होनहार विखान के होत चीकने पात' महीदपुर के उपाश्रय उसी रात्री को महाविद्वान्, प्रखरतपस्वी आचार्य श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज विराज रहे थे। श्रीरामरत्न धर्म से दिगम्बर जैन तो थे ही । आपके जैन संस्कार एवं सुशिक्षित माता-पिता द्वारा बालवय में आपको मिली धार्मिक शिक्षा ने आपको उपाश्रय में जाने के लिये प्रेरित किया । आपने उपाश्रय में जाकर पट्ट पर विराजित आचार्य श्री को विधिपूर्वक वंदन किया । इस वंदन ने जितना समय लिया, उतने में ही बुद्धिनिधान, महाविद्वान् आचार्य ने आपकी गहराई का पता पालिया - कुलवान् है, सुसंस्कारी है, दिगम्बर कुलोत्पन्न है, सुशिक्षित माता-पिता का प्यारपला पुत्र है, विनयी, सरल, सद्भावी है और है निर्भीक, साहसी, ढ तथा प्रतिभापुण्ज और होनहार । शरीर की सुडोलता और रमणीकता तो फिर अधिक ही आकर्षक थी, परन्तु वह दुःख से रो अवश्य रही थी; फिर भी वह कुल और कुल की गौरवता का आभास अवश्य दे रही थी । आचार्य श्री और आपमें पर्याप्त समय पर्यंत बात-चीत होती रही। इस बात-चीत का एवं आचार्य श्री के
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