________________
२४८
श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन प्रथ
विविध
ये श्वेताम्बर जैन सम्प्रदायानुसार तपागच्छ के यति थे । इनके दीक्षागुरु पण्डित कृपाविजयजी थे और श्री विजयदेवसूरि के पट्टधर श्री विजयप्रभसूरिजी ने उनको वाचकपद दिया माने ' उपाध्याय' बनाया था। यह प्रत्येक ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है।
___जयतु विजयलक्ष्म्या पार्श्वविश्वकभास्वान् अभिमत सुरशाखी सैव शङ्केश्वराचार्यः जयतु विजयदेव श्री गुरोः पट्टलक्ष्मीप्रभुरिह विजयादिः श्रीप्रभः सूरिशक्रः
विजयप्रभसूरि, जिन्होंने इनको उपाध्याय बनाया था, उनके प्रति भी इन्होंने अपनी कृतज्ञता प्रकट की है । ये प्रतिभाशाली कवि ही नहीं, अपितु दार्शनिक, वैय्याकरण, समयज्ञ, ज्योतिषी, आध्यात्मिक एवं आत्मज्ञानी भी थे । इन्होंने २४ ग्रन्थ लिखे हैं।
शिशुपालवध महाकाव्य की समस्यापूर्तिमेघविजयजी ने अपने इस महाकाव्य को माघ के शिशुपालवध के पद्यों की समस्यापूर्ति के रूप में लिखा है। समस्यापूर्ति या पादपूर्ति का स्वरूप इस प्रकार है। "अन्य कविरचित पद्यों का १-३ चरण लेकर बाकी के चरण अपनी प्रतिभा से पूर्ण करने को समस्यापूर्ति कहते हैं"। "जिसका अभिप्राय मिन्नभिन्न है । ऐसे श्लोकादिक का अपनी वा परकी कृति से सन्धान करना याने भिन्न-भिन्न अभिप्रायवाले अपूर्ण श्लोकों को अपने अभिप्राय से संगतरीति से पूरा करने का नाम समस्यापूर्ति या पादपूर्ति है" । “मूलपदों के भावों के साथ अपने भावों का जितना अधिक सुन्दर समिश्रण कर सकता है और ऐसे कार्य में सहज प्राप्त होने वाली क्लिष्टता और नीरसता से अपने काव्य को बचा सकता है वह कवि (समस्यापूर्ति कार) उतनी ही अधिक मात्रा में सफल कहलाने का गौरव प्राप्त कर सकता है "५ ॥ देवानन्द महाकाव्य उक्त कसौटी पर पूर्णतया खरा उतरता है । मेघविजयजी ने माघ काव्य के सात सर्गों की समस्यापूर्ति की है। इस समस्यापूर्ति में उनके नवीन विचारों को स्थान मिला है । श्री अगरचन्द नाहटा द्वारा प्रतिपादित एवं मतानुसार देवानन्द महाकाव्य में उतनी अधिक क्लिष्टता नहीं जितनी की माघकाव्य में है। मेघविजय जी की भाषा अत्यन्त सरल एवं स्वाभाविक है जबकी माघ में यह बात नहीं । माघ के काव्य में कहीं २ नीरसता भी आगई है । वे तो वर्णन करने में मस्त हो जाते हैं । फिर वे यह नहीं सोचते कि यहां पर किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना चाहिये । किन्तु मेघविजय जी के काव्य में शब्दों का उचित प्रयोग किया
-
१ उदाहरणार्थ देखिए, देवानंद महाकाव्य की अंतिम प्रशस्ति. २ देवानन्द, दिग्विजय महाकाव्य की अन्तिम प्रशस्ति. ३ देखिए, अमरकोश टीका प्रथम काण्ड, शब्दादि वर्ग श्लोक ७ ४ माधवी शब्द कल्पद्रुम कोश ५ जैन पादपूर्ति काव्य साहित्य-अगरचन्द नाहटा, जैन सिद्धान्त भास्कर पृष्ट ६६ भाग 3. किरण १
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org