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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
जैन धर्म के अतिश्रद्धालु थे। एक जैन यति की उनपर कृपा हो गई । जनयति ने उनको एक कपड़े की बनी हुई थैली दी और कहा कि इस थैली में से जितना द्रव्य तुम निकालना चाहोगे, ले सकोगे। थैली औंधी कर देने पर द्रव्य देने की शक्ति लुप्त हो जायगी-यह ध्यान में रखना। नाथू श्रेष्ठी कुछ ही दिनों में अच्छे धनी हो गये और उनका सम्मान भी बढ़ चला । वर्तमान श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ उन्हींका बनवाया हुआ माना जाता है। ऐतद् संबंधी अभी तक कोई लेखतो प्राप्त नहीं हुआ ह, परन्तु जन-जैनतर में नाथू कावडिया द्वारा तथि का निर्माण होने की दंतकथा चली आ रही है। दंतकथाओं के विस्तार में मिश्रण माना जा सकता है, परन्तु उनके मूल में कथाबीज ज्योंका त्यों सन्निहित रहता है। इसके प्रमाण में कोई एक स्तवन-पुस्तक में लेखक ने यही पढ़ा था कि इस तीर्थ का निर्माण नाथू कावड़िया श्रेष्ठी ने करवाया। यह तीर्थ श्वेताम्बर तीर्थों के साथ में उस स्तवन-पुस्तिकामें गाया गया है। बाव का निर्माण जब चल रहा था अथवा वह पूर्ण होने को था 'भिणाय' के सामन्त से किसी चुगलखोर ने जा कहा कि नाथू कावडिया को गडा हुआ अतुल धन प्राप्त हुआ है। तभी वह निर्धन से तुरंत श्रीमंत हो गया और लक्षों रुपया व्यय करके तीर्थ का निर्माण करवाया और अब अत्यन्त विशाल, दृढ और अति गहरी बाव बनवा रहा है । इस पर नाथू श्रेष्ठी एवं सामंत दोनों में तनाव उत्पन्न होगया । सामन्त से श्रेष्ठी की शक्ति एवं प्रभाव बढा हुआ होने से वह उसका तुरंत एवं सीधी हानि तो न कर सका, परन्तु भूमिपति की शक्ति सदा प्रबल ही होती है । अंत में श्रेष्ठी नाथू ने सामन्त से इसका रहस्य प्रजा के समक्ष उद्घटित कर देने का निश्चय प्रकट किया। रहस्योद्घाटन का स्थान पाव ही रखा गया। सामन्त एवं प्रजाजन के समक्ष श्रेष्ठी नाथू ने यति की दी हुई उस थैली को बाव में औंधी करते हुये उद्घोषित किया कि यह सर्व चमत्कार इस थैली में था और औंधी कर देने पर अब वह निर्गत होगया। इसमें कितना सत्य-मिथ्या है ? इस विवेचन पर जाना व्यर्थ है । श्रेष्ठी नाथू कावड़िया ने बाव और तीर्थ यनवाये-यही दंतकथा से सार ग्रहण करना उचित है। . श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ - इसकी प्राचीनता एवं इसके निर्माण तथा स्थलविषय में उपर संकेत हो चुका है। यह तीर्थ लगभग १२०० - १५०० फीट ऊँचा इस पर्वत भाग की सबसे ऊंची पहाडी पर बना है । मूल मंदिर बहुत छोटा है । उसमें केवल एक पूजक अथवा पूजारी के अन्य सुविधा से सामहीं रह सकता है । मूलमंदिर दक्षिणाभिमुख है। मंदिर में गंभारा, गृह मंडप और शृंगार चौकी ये तीन अंग हैं। मंदिर चारों ओर से चार दिवारी से परिपोष्टत है। इस ही परिकोष्ठ में ठीक मंदिर के समक्ष श्वेतांबर यति की चरण-पादुका छत्री है। उस पर चरणपादुका लेख विद्यमान है। यति के रहने का कक्ष एवं बैठने अथवा प्रवचन तथा भक्तों को दर्शनादि देने के लिये द्विमखाली एक छोटी वरशाला भी बनी हुई है। इस वरशाला में भी लेखसंयुक्त पादुका संस्थापित है। इस मंदिर
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