Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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विषय खंड
खरवाटक भिणाय और श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथ
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भिणाय का उल्लेख नहीं मिलता है तो 'मिणाय' इससे भी प्राचीनता रखता है इसमें कोई वाद खड़ा नहीं हो सकता ।
वैसे तो सम्पूर्ण खेराड़ (खरवाटक) पर्वतमयी एवं छोटे - बड़े जंगलोंघाला प्रदेश है। जिसमें 'भिणाय' का भाग तो समचा पर्वतमयी है। इस पर्वत भाग को आजकल ‘कालीघाटी' नाम से बोलते हैं । 'भिणाय' की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिये इस समय पर्वत पर अवशिष्ट दुर्ग-खण्डहर, कावड़िया नाथूशाह बाय और श्री चवलेश्वर पार्श्वनाथतीर्थ एवं एक सरोवर जिसे 'भिणाय तालाब' कहते हैं, शेष बचरहे हैं।
लेखकने इस भागका कई बार निरीक्षण किया है। जिस स्थान पर 'भिणाय' नगर अवस्थित था या विद्यमान खण्डहरोंपर अवस्थित होना संभवित माना जा सकता है वह स्थल आज पदमपुरा, उम्मेदपुरा, चैनपुरा आदि ५-७ अति छोटे २ अर्थात् ५-१०-२५ घरोंवाले गांवों में विभक्त है। इन गांवोंके सम्मिलित क्षेत्रपर एवं खण्डहरों की विस्तृत भूमिका पर विचार करके कह सकते हैं कि 'भिणाय' कभी ५ या ७ सहस्र अथवा अधिक घरोंवाला समृद्ध राजधानी नगर रहा है।
दुर्ग-भिणाय नामक बावसे लगता पर्वत है उस पर्वत पर खण्डित रुपमें दुर्ग की चार दिवारी अभी भी देखी जाती है। चार दिवारी के भीतर 'हाथीठाण' अर्थात हस्तिस्थल एवं प्रासादोंके खण्डित भीति भाग अच्छी प्रकार देख पड़ते हैं। दुर्ग भिणायबाव से लगभग ७००-८०० फुट ऊँचा है । दुर्गपर जाने के लिए एक राजमार्ग का स्थान भी देखने में आता है। इस दुर्गका निर्माण सहस्र वर्ष से भी प्राचीन होना संभवित है जो मेवाड़ राज्य की स्थापना से पूर्व का कहा जा सकता है।
भिणायबाघ-इतनी सुन्दर, सुदृढ़ एवं गहरी है कि तीनों रष्टियोंसे ऐसी बाव उदयपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड, शाहपुरा, रामपुरा जैसे इतिहासप्रसिद्ध राजधानियों में भी नहीं। बाव की रचना यवनशैलीसे प्रभावित है और बाव पर उर्दू अथवा फारसी भाषा में एक शिलापर सुन्दराक्षरों में लेख भी उत्कीर्णित है । उस लेख में क्या लिखित है, लेखक उर्दू, फारसी से अनभिज्ञ होने के कारण उससे कुछ खाभ प्राप्त न कर सका । परन्तु बावकी विद्यमान स्थिति पर विचार कर के कहा जा सकता है कि बाघ लगभग ५०० से ७०० वर्ष पूर्व की बनी होनी चाहिए। बाव स्वरूप से संकेत देती है कि 'मिणाय' कुछ न-कुछ अपमें आजसे ५००-७०० वर्ष पूर्व विद्यमान रहा है। इस बाव के निर्माण की कथा भी बड़ी रोचक है । वह यों है
भिणाय में नाथू कावड़िया नाम के एक निर्धन श्रेष्ठी रहते थे। कठिन श्रम कर के वे अपना निर्वाह चलाते थे। निर्धन होने पर भी वे आत्मान्य थे और
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